रूस और चीन की ऐतिहासिक कदम, दक्षिण-पूर्व एशिया बनेगा परमाणु मुक्त क्षेत्र

यदि यह समझौता सफल होता है, तो दोनों देश विश्व के पहले परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र होंगे, जो इस तरह की संधि का हिस्सा बनेंगे. आइए जानते हैं, इस संधि का महत्व और इसके प्रभाव.

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Nuclear free zone: दक्षिण-पूर्व एशिया में एक नया इतिहास रचा जा सकता है, क्योंकि रूस और चीन जल्द ही एक ऐसी संधि पर हस्ताक्षर करने को तैयार हैं, जो इस क्षेत्र को परमाणु हथियारों से मुक्त कर देगी. यदि यह समझौता सफल होता है, तो दोनों देश विश्व के पहले परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र होंगे, जो इस तरह की संधि का हिस्सा बनेंगे. आइए जानते हैं, इस संधि का महत्व और इसके प्रभाव.

रूस और चीन की भागीदारी का प्रभाव

1995 में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) ने एक ऐतिहासिक संधि बनाई थी, जिसके तहत इसके दस सदस्य देशों: ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम ने परमाणु हथियारों के निर्माण और उपयोग से इनकार किया था.

अब मलेशिया के विदेश मंत्री के अनुसार, रूस और चीन इस संधि से जुड़ने को तैयार हैं. रूस और चीन के इस संधि में शामिल होने का मतलब है कि वे दक्षिण-पूर्व एशिया में परमाणु हथियारों की तैनाती या उपयोग नहीं करेंगे. यह क्षेत्रीय देशों के लिए सुरक्षा की गारंटी होगी. यह संधि क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देगी, खासकर फिलीपींस जैसे देशों के लिए, जहां चीन के साथ तनाव रहता है.

अमेरिका की चुप्पी

अमेरिका ने अभी तक इस संधि पर कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, वह समुद्री आवागमन की स्वतंत्रता पर संधि के प्रभाव को लेकर विचार कर रहा है. मलेशिया के विदेश मंत्रालय के महासचिव दातो श्री अमरान मोहम्मद ज़िन ने हाल ही में कहा कि परमाणु संपन्न देश बिना शर्त इस संधि में शामिल हो सकते हैं. यह कदम दक्षिण-पूर्व एशिया को परमाणु खतरों Ascending(1)मुक्त क्षेत्र बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है.