Generosity Easy Report: भारत में किए गए अपनी तरह के पहले व्यापक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि अधिकांश गैर-लाभकारी संगठन अब रोज़ाना दान (Everyday Giving) को न सिर्फ़ वित्तीय सहायता का ज़रिया, बल्कि सामाजिक परिवर्तन की मज़बूत नींव मानते हैं. गिविंगट्यूज़डे डेटा कॉमन्स (GTDC) के तहत 13 से अधिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा जारी अध्ययन “UDARTA:EG भारत में रोज़ाना दान को बढ़ावा देने के लिए डेटा और शोध का उपयोग” में देशभर के 304 गैर-लाभकारी संगठनों का सर्वेक्षण किया गया. यह अध्ययन गिविंगट्यूज़डे और रोहिणी नीलेकणी फिलैंथ्रॉपीज़ फ़ाउंडेशन के सहयोग से तैयार हुआ.
रिपोर्ट बताती है कि 70% संगठनों ने पिछले पांच वर्षों में रोज़ाना दानदाताओं को स्वयंसेवक के रूप में जोड़ा, जबकि 79% को उनसे आर्थिक योगदान मिला. हालांकि केवल 37% संस्थाओं ने इन दानदाताओं से सक्रिय रूप से धन जुटाया. जिससे यह स्पष्ट होता है कि क्षमता और व्यवहार के बीच अभी भी बड़ा अंतर मौजूद है.
तकनीक बनी बदलाव की ताकत
अध्ययन में सामने आया कि डिजिटल साधनों और दान उपकरणों का इस्तेमाल करने वाले संगठनों के लिए धन जुटाना आसान हुआ है. लगभग 86% संस्थाएं अपनी वेबसाइट पर “दान बटन” का उपयोग करती हैं, और उनमें से 58% ने इसे प्रभावी बताया. इससे यह स्पष्ट है कि तकनीक रोज़ाना दान को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.
गिविंगट्यूज़डे की भारत में मुख्य सलाहकार प्रियंका दत्त के अनुसार, “रोज़ाना दान सिर्फ़ फंडरेज़िंग का तरीका नहीं, बल्कि जनभागीदारी का सशक्त माध्यम है. जब दानदाता स्वयंसेवक बनते हैं और स्वयंसेवक समर्थक बनते हैं, तो समाज एक साझा मिशन के लिए एकजुट हो जाता है.”
देशभर से मिली भागीदारी
सर्वे में 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के संगठन शामिल हुए, जिनमें महाराष्ट्र (17%), कर्नाटक (14%) और तमिलनाडु (9%) सबसे आगे रहे. ये संस्थाएं शिक्षा, सामाजिक सेवाएं और स्वास्थ्य जैसे 14 क्षेत्रों में सक्रिय हैं. गिविंग टुगेदर फाउंडेशन की कार्यक्रम प्रमुख मर्लिन फ़र्नांडिस ने कहा कि यह रिपोर्ट इस बात का प्रमाण है कि “रोज़ाना दानदाता” केवल आर्थिक सहायता नहीं, बल्कि भरोसे और दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के प्रतीक बन चुके हैं.
🔗 रिपोर्ट देखें: https://www.givingtuesday.org/india/udarta-eg/report/