चित्रकूट में लगा ऐतिहासिक गधों का मेला, 'शाहरुख-सलमान' से लेकर 'आलिया भट्ट' और 'अमिताभ' की लगी बोली!

Chitrakoot Donkey Fair: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी चित्रकूट में इस समय एक अनोखा और ऐतिहासिक गधा मेला लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है.

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Chitrakoot Donkey Fair: उत्तर प्रदेश की धार्मिक नगरी चित्रकूट में इस समय एक अनोखा और ऐतिहासिक गधा मेला लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. दीपदान अमावस्या के अवसर पर जहां लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी के तट पर पूजा-अर्चना के लिए जुटे हैं, वहीं पास में ही सदियों पुरानी इस परंपरा को जारी रखते हुए पांच दिवसीय गधा मेला भी आयोजित किया गया है.

औरंगजेब के समय से चली आ रही परंपरा

इस मेले की शुरुआत मुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी. कहा जाता है कि उसने अपनी सेना के लिए गधों और खच्चरों की खरीद इसी मेले से शुरू की थी. तभी से यह परंपरा निरंतर जारी है. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार और अन्य राज्यों से व्यापारी अपने गधों के साथ चित्रकूट पहुंचते हैं.

इस बार के मेले में लगभग पंद्रह हजार गधे शामिल हुए हैं. इनकी कीमतें 5 हजार रुपये से लेकर तीन लाख रुपये तक हैं. दिलचस्प बात यह है कि इन गधों को फिल्मी सितारों और चर्चित हस्तियों के नाम दिए गए हैं. ‘शाहरुख खान’, ‘सलमान खान’, ‘आलिया भट्ट’, ‘अमिताभ बच्चन’, ‘काजोल’ और यहां तक कि ‘लॉरेंस बिश्नोई’ नाम के गधों ने भी मेले में सबका ध्यान खींचा. लोग इनके साथ तस्वीरें खिंचवाने में भी दिलचस्पी दिखा रहे हैं.

आठ हजार गधे बिक चुके

मेले के पहले तीन दिनों में ही करीब आठ हजार गधे बिक चुके हैं. व्यापारी गधों की नस्ल, कद-काठी और ताकत देखकर उनकी कीमत तय करते हैं. कई बार नामों के आधार पर भी बोली बढ़ जाती है. उदाहरण के लिए, ‘शाहरुख’ और ‘सलमान’ नाम वाले गधों की कीमत आम गधों से कहीं अधिक लगी.

घटती सुविधाओं से फीकी पड़ रही रौनक

हालांकि, इस ऐतिहासिक मेले की रौनक अब सुविधाओं के अभाव में फीकी पड़ती जा रही है. मंदाकनी नदी के किनारे आयोजित इस मेले में न तो पीने के पानी की उचित व्यवस्था है, न ही व्यापारियों और उनके जानवरों के लिए छाया की सुविधा. स्वच्छता की स्थिति भी चिंताजनक है. सुरक्षा के नाम पर होमगार्ड तक तैनात नहीं किए गए, जिससे व्यापारी असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. इसके अलावा ठेकेदारों द्वारा जबरन पैसे वसूलने की शिकायतें भी सामने आई हैं.

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह मेला सिर्फ व्यापार का नहीं, बल्कि सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है. अगर प्रशासन ने जल्द ध्यान नहीं दिया, तो यह सदियों पुरानी परंपरा समाप्त हो सकती है. जरूरत है कि सरकार इस ऐतिहासिक मेले को संरक्षित करे, ताकि आने वाली पीढ़ियां भी इसकी अनोखी परंपरा से रूबरू हो सकें.