पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 90% की कमी, मान सरकार की योजना साबित हुई कारगर

Mann government: पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में इस बार अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है, जिससे यह अभियान पूरे देश के लिए मिसाल बन गया है. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मुद्दे को केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि पंजाब के भविष्य का सवाल मानते हुए सक्रिय कदम उठाए.

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Mann government: पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में इस बार अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है, जिससे यह अभियान पूरे देश के लिए मिसाल बन गया है. मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मुद्दे को केवल पर्यावरणीय समस्या नहीं बल्कि पंजाब के भविष्य का सवाल मानते हुए सक्रिय कदम उठाए. पिछले वर्षों में पराली जलाना पंजाब के लिए गंभीर समस्या बन गई थी और इसकी वजह से न केवल राज्य बल्कि दिल्ली-एनसीआर सहित आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता में भारी गिरावट आई थी.

इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लिया

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2021 में 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच राज्य में पराली जलाने के कुल 4,327 मामले दर्ज किए गए थे. वहीं, 2025 में यह संख्या घटकर केवल 415 मामलों पर आ गई है, यानी करीब 90% की कमी. यह रिकॉर्ड कमी इस बात का संकेत है कि मान सरकार ने इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लिया और किस तरह जमीनी स्तर पर ठोस कदम उठाए.

मान सरकार ने पराली प्रबंधन को सिर्फ योजनाओं तक सीमित नहीं रखा बल्कि इसे खेतों तक लागू किया. हर जिले में व्यापक अभियान चलाया गया और हज़ारों CRM मशीनें किसानों को उपलब्ध कराई गईं ताकि वे पराली को खेत में ही दबाकर मिट्टी में मिलाएं और आग लगाने से बचें. गाँव-गाँव में टीमें बनाई गईं और ब्लॉक स्तर पर निगरानी की गई. अधिकारियों को इस बात की जिम्मेदारी दी गई कि पराली जलाने की कोई घटना न हो.

25 से 40 प्रतिशत तक हुआ सुधार

इस रणनीति का सबसे ज़्यादा असर उन जिलों में दिखा जो हर साल पराली जलाने की घटनाओं के लिए जाने जाते थे. संगरूर, बठिंडा और लुधियाना जैसे जिले अब इस समस्या से लगभग मुक्त हो गए हैं. कई क्षेत्रों में पराली जलाने की घटनाएं शून्य के करीब पहुँच गई हैं.

सरकार की सख्त और संगठित रणनीति का असर केवल खेतों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वायु गुणवत्ता में भी सुधार आया. अक्टूबर 2025 में लुधियाना, पटियाला और अमृतसर जैसे औद्योगिक और कृषि जिलों में AQI में पिछले वर्षों के मुकाबले 25 से 40 प्रतिशत तक सुधार हुआ. इसका सकारात्मक असर दिल्ली-एनसीआर की हवा पर भी देखने को मिला. अब पंजाब के खेतों से उठने वाला धुआं पहले जैसा घना नहीं रहा, और राज्य की पहचान प्रदूषण के बजाय समाधान और प्रगति से जुड़ गई है.

सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह रही कि इस अभियान में किसानों को विरोधी नहीं बल्कि साझेदार बनाया गया. सरकार ने किसानों को भरोसा दिलाया कि वे इस प्रक्रिया में अकेले नहीं हैं. किसानों ने भी इस पहल का सकारात्मक समर्थन किया और बड़े पैमाने पर मशीनों का उपयोग किया. कई गांवों में किसान सामूहिक रूप से मशीनें चला रहे हैं और पराली से खाद और ऊर्जा तैयार कर रहे हैं. इस तरह पराली जलाने के बजाय खेती में नई सोच और पर्यावरण की जिम्मेदारी को बढ़ावा मिला.

पराली जलाने की घटनाओं में 90% की कमी

मान सरकार ने स्पष्ट संदेश दिया है कि अगर सरकार नीयत और प्रतिबद्धता के साथ काम करे, तो लंबे समय से चली आ रही समस्या को भी समाप्त किया जा सकता है. पंजाब में पराली और प्रदूषण पर नियंत्रण की यह कहानी किसी नारे या भाषण से नहीं, बल्कि जमीनी कार्रवाई और ठोस प्रयास से संभव हुई है.

आज पंजाब की यह सफलता पूरे देश के लिए प्रेरणा बन गई है. सरकार और किसानों की साझेदारी ने यह साबित कर दिया कि सही नीतियों और सक्रियता से पर्यावरणीय संकट को अवसर में बदला जा सकता है. अब पंजाब पराली के धुएं के बजाय साफ हवा और हरे-भरे खेतों की वजह से जाना जाएगा. यह वही पंजाब है, जिसने वर्षों तक पराली जलाने के लिए आलोचना झेली, लेकिन अब वही राज्य देश को यह दिखा रहा है कि समाधान कैसे तैयार किए जाते हैं.

मान सरकार की इस पहल ने साबित कर दिया है कि यदि इरादा मजबूत हो, तो हवा साफ होती है, भूमि हरी-भरी रहती है और किसान भी इसके लाभार्थी बनते हैं. अब अन्य राज्य भी पंजाब के इस मॉडल को अपनाने की ओर देख रहे हैं. पराली जलाने की घटनाओं में 90% की कमी न केवल मान सरकार की सफलता है, बल्कि पूरे भारत के लिए एक नई दिशा और प्रेरणा भी है.