Supreme Court's statement on Bihar voter list: बिहार में इसी साल विधानसभा चुनाव होने हैं. उससे पहले, बिहार में चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में कुछ बदलाव करने की बात कही है. इसे लेकर बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने कल बिहार बंद का ऐलान किया था. लेकिन इसका बिहार में ज़्यादा असर नहीं देखा गया.
आज गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया. यह फैसला अक्टूबर-नवंबर 2025 में बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अहम है.
संवैधानिक आधार पर निर्णय
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई की. खंडपीठ ने कहा कि चुनाव आयोग का यह कदम भारतीय संविधान के तहत अनिवार्य है. आयोग ने स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया नई नहीं है, बल्कि 2003 में भी ऐसी कार्रवाई की गई थी. इस विशेष संशोधन के तहत लगभग 7.9 करोड़ नागरिकों को कवर किया जाएगा.
याचिकाओं पर सुनवाई
इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 10 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं. इनमें गैर-सरकारी संगठन 'एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स' की याचिका प्रमुख है. इसके अलावा, राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, कांग्रेस के के.सी. वेणुगोपाल, एनसीपी (एसपी) की सुप्रिया सुले, सीपीआई के डी. राजा, समाजवादी पार्टी के हरिंदर सिंह मलिक, शिवसेना (यूबीटी) के अरविंद सावंत, झामुमो के सर्फराज अहमद और सीपीआई (एमएल) के दीपंकर भट्टाचार्य ने भी इस आदेश को रद्द करने की मांग की है.
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग ने जोर देकर कहा कि यह संशोधन संवैधानिक दायित्वों का हिस्सा है और इसमें मतदाता पहचान पत्र या आधार कार्ड को शामिल नहीं किया जा रहा है. आयोग का यह कदम पारदर्शी और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बिहार के चुनावी परिदृश्य में पारदर्शिता और विश्वसनीयता को बढ़ावा देगा. मतदाता सूची का यह संशोधन न केवल संवैधानिक है, बल्कि यह बिहार के नागरिकों के मताधिकार को और मजबूत करेगा.