क्या सरकार मनरेगा को खत्म कर ग्रामीण रोजगार के लिए लाने जा रही नया कानून? होंगे कई ऐतिहासिक बदलाव- रिपोर्ट

सरकार ने सोमवार को लोकसभा सदस्यों के बीच एक बिल सर्कुलेट किया, जिसका मकसद 'विकसित भारत @2047 के राष्ट्रीय विजन के साथ जुड़ा एक ग्रामीण विकास ढांचा स्थापित करना' है.

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Courtesy: Pinterest

नई दिल्ली: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी MGNREGA को लेकर केंद्र सरकार बड़ा बदलाव करने की तैयारी में है. सरकार संसद में विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन बिल 2025 पेश करने की योजना बना रही है. इस नए बिल के लागू होने पर साल 2005 से चल रहे MGNREGA कानून को समाप्त किया जा सकता है. इस प्रस्ताव ने सियासी हलकों में हलचल बढ़ा दी है.

सूत्रों के मुताबिक सरकार ने इस नए बिल का मसौदा लोकसभा सदस्यों के बीच सर्कुलेट कर दिया है. इसे संसद के शीतकालीन सत्र में पेश किए जाने की संभावना है. संसद का शीतकालीन सत्र एक दिसंबर से शुरू हुआ है और उन्नीस दिसंबर को समाप्त होगा. सरकार का कहना है कि यह नया कानून विकसित भारत 2047 के राष्ट्रीय विजन के अनुरूप ग्रामीण रोजगार और आजीविका को मजबूत करने के लिए लाया जा रहा है.

बिल में क्या है?

बिल की कॉपी के अनुसार इसके तहत हर ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को जो बिना स्किल वाले शारीरिक काम करने को तैयार हैं उन्हें हर वित्तीय वर्ष में 125 दिनों का वेतन रोजगार देने की कानूनी गारंटी दी जाएगी. मौजूदा MGNREGA में यह सीमा 100 दिनों की है. सरकार का दावा है कि नया मिशन ग्रामीण क्षेत्रों में समृद्धि, सशक्तिकरण और पूर्ण कवरेज को बढ़ावा देगा.

विपक्ष ने क्यों किया विरोध?

हालांकि इस प्रस्ताव के सामने आते ही विपक्ष ने सरकार पर हमला तेज कर दिया है. कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार MGNREGA को खत्म कर उसके नाम और पहचान को मिटाना चाहती है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि प्रधानमंत्री पहले जिस योजना को विफलता का प्रतीक बताते थे अब उसी का श्रेय लेना चाहते हैं.

केसी वेणुगोपाल ने क्या कहा?

कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा कि यह महात्मा गांधी को राष्ट्रीय सोच से हटाने की कोशिश है. उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार हर साल MGNREGA के बजट में कटौती कर रही है जबकि मजदूर अधिक मजदूरी की मांग कर रहे हैं. उन्होंने इसे इतिहास को बदलने और महात्मा गांधी की विरासत को कमजोर करने की कोशिश बताया. उन्होंने इस कदम को राजनीतिक मकसद वाला, बेकार और शासन से ध्यान भटकाने वाला बताया, विपक्ष का कहना है कि नाम बदलने से बेहतर है कि योजना को मजबूत किया जाए और मजदूरों की समस्याओं का समाधान किया जाए.