केंद्रीय मंत्री रहते अंडरग्राउंड, चिरूडीह कांड और भी कई खास बातें, शिबू सोरेन के राजनीतिक जीवन की कहानी

झारखंड के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. उनके राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव रहे, जिसमें 1975 का चिरूडीह नरसंहार और केंद्रीय मंत्री के रूप में इस्तीफे जैसे विवाद शामिल हैं.

Date Updated
फॉलो करें:

Shibu Soren: झारखंड के दिग्गज नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. उनके राजनीतिक सफर में कई उतार-चढ़ाव रहे, जिसमें 1975 का चिरूडीह नरसंहार और केंद्रीय मंत्री के रूप में इस्तीफे जैसे विवाद शामिल हैं. आइए, उनके जीवन और उस घटना की कहानी को जानें, जिसने उन्हें सुर्खियों में ला दिया.

1975 की खूनी घटना

1975 में दुमका जिले के चिरूडीह में एक हिंसक घटना घटी, जिसमें 11 लोगों की जान चली गई, जिनमें 9 मुस्लिम शामिल थे. शिबू सोरेन उस समय झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता थे और उनका दावा था कि वे गरीबों की जमीन वापस दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे थे.

इस घटना में एक पक्ष में आदिवासी तीर-कमान लिए थे, जबकि दूसरा पक्ष बंदूकधारी महाजनों का था. दोनों पक्षों के बीच भयंकर झड़प हुई, जिसके बाद पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित किया. इस नरसंहार ने शिबू सोरेन को आदिवासियों के बीच लोकप्रिय बना दिया.

केंद्रीय मंत्री के रूप में विवाद और इस्तीफा

2004 में यूपीए सरकार में शिबू सोरेन को कोयला मंत्री बनाया गया. लेकिन चिरूडीह नरसंहार के 30 साल पुराने मामले में गैर-जमानती वारंट जारी होने के बाद वे अंडरग्राउंड हो गए. इसके चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उनसे इस्तीफा मांग लिया. बाद में कोर्ट से राहत मिलने पर उन्हें फिर से मंत्रिमंडल में शामिल किया गया.

आदिवासियों के मसीहा 

शिबू सोरेन ने 1970 के दशक में 'धनकटनी आंदोलन' के जरिए आदिवासियों के हक की आवाज बुलंद की. उन्होंने बिहार से अलग झारखंड राज्य के गठन में अहम भूमिका निभाई. वे तीन बार (2005, 2008, 2009) झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन कभी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके.

शिबू सोरेन ने 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. दुमका से 1980, 1986, 1989, 1991, 1996 और 2004 में सांसद चुने गए.