Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसालिमीन (AIMIM) के पंजीकरण को रद्द करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की. याचिकाकर्ता तिरुपति नरशिमा मुरारी ने दावा किया था कि AIMIM धार्मिक आधार पर वोट मांगती है, जो धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है. हालांकि, जस्टिस सूर्यकांत की अगुवाई वाली बेंच ने याचिका खारिज कर दी और पार्टी को राहत प्रदान की. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि AIMIM का संविधान भारत के संविधान के खिलाफ नहीं है.
धर्म और जाति पर निर्भरता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ राजनीतिक दल जातिगत भावनाओं पर निर्भर करते हैं, जो धर्म आधारित राजनीति जितना ही खतरनाक है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वे किसी विशेष दल या व्यक्ति पर आरोप लगाए बिना व्यापक सुधारों के लिए नई याचिका दायर कर सकते हैं. जस्टिस सूर्यकांत ने जोर देकर कहा कि पुराने धार्मिक ग्रंथों या साहित्य की शिक्षा में कोई बुराई नहीं है, और कानून इसकी इजाजत देता है.
AIMIM का संविधान
कोर्ट ने AIMIM के घोषणापत्र का हवाला देते हुए कहा कि पार्टी आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए काम करती है. यह संविधान द्वारा प्रदत्त अल्पसंख्यक अधिकारों के अनुरूप है. कोर्ट ने याचिकाकर्ता के इस तर्क को खारिज किया कि AIMIM केवल एक समुदाय के हितों के लिए काम करती है.
वकील विष्णु जैन के तर्क
याचिकाकर्ता के वकील विष्णु जैन ने दलील दी कि एआईएमआईएम मुसलमानों में इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देती है, जो भेदभावपूर्ण है. जवाब में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अगर कोई पार्टी संवैधानिक रूप से संरक्षित शिक्षा को बढ़ावा देती है, तो इसमें कोई आपत्ति नहीं है. अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के 1989 के फैसले का हवाला दिया और याचिकाकर्ता को उसका अध्ययन करने की सलाह दी.
सर्वोच्च न्यायालय ने एआईएमआईएम के पंजीकरण को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि संवैधानिक ढांचे के तहत काम करने वाली पार्टियों को धार्मिक या सामाजिक आधार पर शिक्षा प्रदान करने का अधिकार है. यह फैसला धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन को रेखांकित करता है.