Digital transactions: भारत में डिजिटल क्रांति ने नकद लेन-देन को न केवल कम किया है, बल्कि गंदे और क्षतिग्रस्त नोटों की समस्या को भी नियंत्रित किया है. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक साल में क्षतिग्रस्त नोटों की संख्या में 41% की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई है.
यूपीआई और अन्य डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म्स की बढ़ती लोकप्रियता ने नकदी के उपयोग को कम किया है, जिससे नोटों की बर्बादी पर प्रभावी रोक लगी है.
डिजिटल भुगतान ने बदला नोटों का हाल
पहले लोग नोटों पर कुछ भी लिख देते थे, उन्हें लापरवाही से मोड़कर रखते थे या अनुचित तरीके से उपयोग करते थे, जिससे नोट जल्दी खराब हो जाते थे. लेकिन डिजिटल भुगतान की ओर बढ़ता रुझान, लोगों में बढ़ती जागरूकता और RBI की सख्त नीतियों ने इस समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है. यूपीआई के माध्यम से होने वाले त्वरित और सुरक्षित लेन-देन ने नकदी पर निर्भरता को कम किया है, जिससे नोटों की आयु बढ़ी है और गंदे नोटों की संख्या में कमी आई है.
चार महीनों में कितने नोट हुए बाहर?
RBI हर साल क्षतिग्रस्त और गंदे नोटों को चलन से बाहर करता है. 2025 में 500 रुपये के 1.81 अरब, 200 रुपये के 56.27 करोड़, 100 रुपये के 1.07 अरब और 50 रुपये के 65 करोड़ नोट हटाए गए. ये आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि डिजिटल लेन-देन के बढ़ते चलन ने नकदी के उपयोग को काफी हद तक कम किया है.
अर्थव्यवस्था पर प्रभाव और भविष्य
डिजिटल भुगतान के बढ़ते उपयोग से न केवल गंदे नोटों की समस्या कम हुई है, बल्कि अर्थव्यवस्था में नकदी पर निर्भरता भी घट रही है. यह बदलाव पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि नोटों की छपाई और निपटान में संसाधनों की खपत कम हो रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में डिजिटल लेन-देन का यह रुझान और तेज होगा, जिससे भारत कैशलेस अर्थव्यवस्था की दिशा में और मजबूती से आगे बढ़ेगा.