बांग्लादेश पर ईशनिंदा कानून लागू करने का दबाव, पाकिस्तानी मौलवियों ने ढाका में की कड़ी मांग

ढाका में हाल ही में आयोजित एक बड़े धार्मिक सम्मेलन ने दक्षिण एशिया की राजनीति और सामाजिक माहौल में हलचल बढ़ा दी है. पाकिस्तान के दो प्रभावशाली धर्मगुरुओं ने बांग्लादेश में पाकिस्तान जैसे कड़े ईशनिंदा कानून लागू करने की खुली मांग की, जिससे देश के भीतर धार्मिक-सामाजिक तनाव बढ़ने की आशंकाएं प्रबल हो गई हैं.

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Bangladesh: ढाका में हाल ही में आयोजित एक बड़े धार्मिक सम्मेलन ने दक्षिण एशिया की राजनीति और सामाजिक माहौल में हलचल बढ़ा दी है. पाकिस्तान के दो प्रभावशाली धर्मगुरुओं ने बांग्लादेश में पाकिस्तान जैसे कड़े ईशनिंदा कानून लागू करने की खुली मांग की, जिससे देश के भीतर धार्मिक-सामाजिक तनाव बढ़ने की आशंकाएं प्रबल हो गई हैं. आम चुनावों से पहले आया यह घटनाक्रम बांग्लादेश की राजनीतिक दिशा पर बाहरी प्रभावों की गंभीर चिंता पैदा करता है.

ढाका में आयोजित सम्मेलन में पाकिस्तानी मौलवियों का दबदबा

ढाका के ऐतिहासिक सुहरावर्ती मैदान में “ख़त्म-ए-नबूवत ग्रैंड कॉन्फ़्रेंस” का आयोजन सुबह 9 बजे से दोपहर 3:30 बजे तक हुआ. इस आयोजन में पांच देशों के कट्टरपंथी इस्लामी विद्वान शामिल हुए, जिनमें पाकिस्तान का 35 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल सबसे अधिक ध्यान आकर्षित कर रहा था. इनमें से 19 मौलवियों ने मंच से भाषण दिया.

सम्मेलन में प्रमुख रूप से पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम-फज़्ल (JUI-F) के मुखिया और नेशनल असेंबली के सदस्य मौलाना फजलुर रहमान तथा अहले सुन्नत वल जमात के नेता मौलाना औरंगजेब फारूकी ने शामिल होकर कड़े बयान दिए.

ईशनिंदा कानून को लागू करने की खुली मांग

CNN-News18 की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तानी मौलवियों ने बांग्लादेश से पाकिस्तान के मॉडल पर आधारित सख्त ईशनिंदा कानून लागू करने की मांग की. उन्होंने “मुस्लिम एकता” के नारे के साथ कहा कि “काबुल से बांग्लादेश तक एक कलमा हम जीतेंगे.” मौलाना फजलुर रहमान ने दावा किया कि पाकिस्तान ने पैगंबर के सम्मान की रक्षा के लिए ‘खून बहाया’ है और जरूरत पड़ने पर फिर ऐसा किया जाएगा. उन्होंने बांग्लादेशी मौलवियों पर यह दबाव भी बनाया कि वे अहमदिया/कादियानी समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कराने की दिशा में कदम उठाएं.

विशेषज्ञों की नजर में सम्मेलन का छिपा संदेश

विशेषज्ञों का कहना है कि यह बयानबाज़ी दक्षिण एशिया में उग्रवादी नेटवर्क मजबूत करने या उन्हें विस्तार देने की कोशिशों का हिस्सा हो सकती है. ईशनिंदा और धार्मिक पहचान से जुड़े मुद्दों के जरिए आम जनता के बीच भावनात्मक उभार पैदा कर राजनीतिक माहौल को प्रभावित करना चरमपंथी समूहों की सामान्य रणनीति रही है.

विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि बांग्लादेश में जल्द होने वाले चुनावों से पहले इस तरह की बयानबाज़ी चिंताजनक है, क्योंकि इससे देश के भीतर कट्टरपंथी नैरेटिव मजबूत हो सकता है और साम्प्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.

बांग्लादेश और पाकिस्तान के ईशनिंदा कानून में अंतर

पाकिस्तान में जनरल जिया-उल-हक के शासन काल में 1980 के दशक में ईशनिंदा कानून काफ़ी कठोर किए गए थे. धारा 295-बी और 295-सी के तहत पैगंबर मोहम्मद का अपमान करने पर मौत की सजा तक का प्रावधान है. इसके विपरीत, बांग्लादेश अभी भी औपनिवेशिक काल की धारा 295-ए के तहत कार्रवाई करता है, जिसमें किसी धर्म का जानबूझकर अपमान करने पर अधिकतम दो साल की कैद का प्रावधान है. विशेषज्ञों का कहना है कि यही अंतर पाकिस्तानी मौलवियों के तीखे दबाव का मुख्य कारण है, जो चाहते हैं कि बांग्लादेश भी उसी दिशा में कदम बढ़ाए.