2025 Vs 2020: RJD को भयंकर नुकसान, JDU का 100% सीटों का फायदा, बिहार चुनाव का पूरा विश्लेषण

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम राज्य की राजनीति में एक बड़ा मोड़ लेकर आया है. एनडीए ने जहां प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर वापसी की, वहीं महागठबंधन विशेषकर राजद के लिए यह चुनाव अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक हारों में से एक साबित हुआ.

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पटना: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिणाम राज्य की राजनीति में एक बड़ा मोड़ लेकर आया है. एनडीए ने जहां प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर वापसी की, वहीं महागठबंधन विशेषकर राजद के लिए यह चुनाव अब तक की सबसे बड़ी राजनीतिक हारों में से एक साबित हुआ. 2020 की तुलना में इस बार राजनीतिक समीकरण पूरी तरह बदल गए.

नीतीश कुमार के नेतृत्व में JDU ने उम्मीदों से कहीं ज्यादा शानदार प्रदर्शन करते हुए उन सभी सीटों पर जीत हासिल की, जिन पर वह चुनाव मैदान में उतरी थी. इसके उलट तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी को 2010 जैसी करारी पराजय का सामना करना पड़ा.

राजद में जातीय संतुलन की चूक बनी सबसे बड़ा कारण

राजद की हार में सबसे ज्यादा चर्चा जिस फैसले की हो रही है, वह है 52 यादव उम्मीदवारों को टिकट देना. आरजेडी पहले से यादव-मुस्लिम समीकरण वाली पार्टी मानी जाती रही है, लेकिन इस बार यादव उम्मीदवारों का अनुपात इतना अधिक रहा कि पार्टी की जातिवादी छवि और मजबूत होकर सामने आई. 144 टिकटों में से 52 यादव उम्मीदवार यानी करीब 36% ने गैर-यादव पिछड़ों, अति पिछड़ों और सवर्ण मतदाताओं को असहज कर दिया. बिहार में यादव आबादी लगभग 14% ही है, लेकिन टिकट वितरण ने ऐसा संदेश दिया कि आरजेडी खुद को केवल यादवों तक सीमित कर रही है.

गौर करने वाली बात यह रही कि इतनी बड़ी संख्या में यादव उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के बावजूद पार्टी केवल 25 सीटें जीत पाई. यह परिणाम बताता है कि सोशल इंजीनियरिंग के बिना केवल कोर वोट बैंक पर भरोसा करना अब बिहार की राजनीति में सफल रणनीति नहीं रहा.

गठबंधन राजनीति में तेजस्वी की रणनीति हुई भारी

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन की चुनावी रणनीति भी कई स्तर पर कमजोर साबित हुई. सीट शेयरिंग को लेकर कांग्रेस और वाम दलों के बीच असंतोष रहा. सहयोगियों का आरोप था कि तेजस्वी यादव गठबंधन के भीतर नेतृत्व थोपने की कोशिश कर रहे थे.

कांग्रेस जहां ‘गारंटी मेनिफेस्टो’ के जरिए अपनी पहचान स्थापित करना चाहती थी, वहीं तेजस्वी यादव रोजगार के मुद्दे पर अकेले आगे बढ़ते नजर आए. तेजस्वी ने महागठबंधन के घोषणापत्र का नाम ‘तेजस्वी प्रण’ रखकर सहयोगियों को और किनारे कर दिया. प्रचार अभियान में भी वही पूरी तरह हावी दिखे. राहुल गांधी सहित बाकी सहयोगियों की रैलियों को अपेक्षित महत्व नहीं मिला.

तेजस्वी के नेतृत्व का तीसरा चुनाव, पर सबसे करारी हार

  • तेजस्वी के नेतृत्व में आरजेडी ने 2015, 2020 और 2025 के तीन चुनाव लड़े.
  • 2015 में नीतीश-लालू गठबंधन ने शानदार जीत दर्ज की और आरजेडी 80 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी.
  • 2020 में भी कांग्रेस के साथ लड़कर आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी रही.
  • लेकिन 2025 में स्थिति पूरी तरह उलट गई. पार्टी महज 25 सीटों पर सिमट गई, जो 2010 की हार की याद ताजा कर गई.
  • यह बताता है कि नेतृत्व में लोकप्रियता बनाए रखना और राजनीतिक संतुलन साधना—दोनों ही तेजस्वी के लिए इस बार चुनौतीपूर्ण साबित हुए.

नीतीश कुमार का दमदार कमबैक

2020 में केवल 45 सीटों पर सिमटकर नीतीश कुमार की राजनीतिक साख पर सवाल उठने लगे थे. मुख्यमंत्री के रूप में उनकी लोकप्रियता भी 16–25% तक गिर गई थी. राजनीतिक गलियारों में चर्चा थी कि बीजेपी इस बार उन्हें ‘छोटे भाई’ की भूमिका में ला चुकी है, और सीटों का प्रदर्शन मुख्यतः मोदी ब्रांड करवाएगा.

लेकिन चुनाव परिणामों ने इन सभी आकलनों को गलत साबित किया. JDU ने 2020 की तुलना में अपनी प्रदर्शन क्षमता को 100% तक बढ़ाते हुए सभी सीटों पर जीत दर्ज की. इससे साबित हुआ कि नीतीश कुमार की पकड़ अभी भी बिहार की सामाजिक और राजनीतिक संरचना में बेहद मजबूत है.

कैसे जीता नीतीश का ‘सामाजिक समीकरण’

  • नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत उनका ‘सामाजिक संतुलन’ रहा है.
  • वे अपनी कुर्मी जाति (3% आबादी) से आगे निकलकर कुशवाहा, पासवान, मल्लाह, मुसहर, समेत अधिकांश OBC व EBC समूहों में लोकप्रिय हैं.
  • मुस्लिम मतदाताओं में भी उनका एक स्थायी वोट बैंक बना रहा, जो आमतौर पर बीजेपी के खिलाफ देखा जाता है.
  • इस व्यापक सामाजिक स्वीकार्यता ने नीतीश को पुनः एक निर्णायक नेता के रूप में स्थापित कर दिया.

महिला मतदाताओं ने फिर निभाई निर्णायक भूमिका

पिछले एक दशक में हुए चुनावों की तरह इस बार भी महिलाओं का वोट नीतीश कुमार के पक्ष में एक बड़ा फैक्टर साबित हुआ.
मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) जैसी योजनाओं ने महिला वोटरों का विश्वास मजबूत किया. इस बार JDU कैडर भी पूरी तरह सक्रिय और संगठित रहा, जिससे ज़मीनी स्तर पर वोट ट्रांसफर में सहूलियत मिली.