उद्धव ठाकरे की सरकार गिराने में 'हनीट्रैप' का खेल, शिवसेना (UBT) का बड़ा दावा

'सामना' के अनुसार, अविभाजित शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कम से कम 18 विधायक और चार सांसद हनीट्रैप में फंस गए. इन नेताओं को अपनी छवि बचाने के लिए मजबूरन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थामना पड़ा

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Maha Vikas Aghadi: शिवसेना (UBT) ने 2022 में महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार के पतन को लेकर एक चौंकाने वाला खुलासा किया है. इस 'हनीट्रैप' के जाल में फंसाकर विधायकों और सांसदों को ब्लैकमेल किया गया, जिसके चलते एमवीए सरकार का तख्ता पलट हुआ.

हनीट्रैप और ब्लैकमेल का जाल

'सामना' के अनुसार, अविभाजित शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कम से कम 18 विधायक और चार सांसद हनीट्रैप में फंस गए. इन नेताओं को अपनी छवि बचाने के लिए मजबूरन भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थामना पड़ा. संपादकीय में दावा किया गया है कि केंद्रीय जांच एजेंसियों ने दबाव बनाकर इन नेताओं को अपने पक्ष में किया.

बीजेपी ने कथित तौर पर इजराइल से लाए गए गुप्त कैमरों और पेगासस जैसी निगरानी प्रणाली का उपयोग कर नेताओं की निजी जिंदगी पर नजर रखी और उन्हें ब्लैकमेल किया.

एकनाथ शिंदे को सौंपी गई पेन ड्राइव

संपादकीय में यह भी खुलासा किया गया है कि हनीट्रैप के सबूतों से भरी एक पेन ड्राइव एकनाथ शिंदे को सौंपी गई थी. इसके बाद शिंदे सूरत, गुवाहाटी और गोवा की यात्रा पर निकल गए. उस समय उनके पास केवल 9-10 विधायकों का समर्थन था, लेकिन गृह विभाग और तत्कालीन विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस के दबाव के चलते कई विधायक और सांसद उनके साथ जुड़ गए. इस बगावत ने जून 2022 में शिवसेना को दो फाड़ कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

कांग्रेस नेता का गंभीर आरोप

'सामना' ने कांग्रेस नेता विजय वडेट्टीवार के बयान का हवाला देते हुए कहा कि उनकी टिप्पणी को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. वडेट्टीवार ने दावा किया था कि विधायकों और सांसदों को ब्लैकमेल कर पाला बदलने के लिए मजबूर किया गया. संपादकीय में यह भी कहा गया कि कुछ मंत्रियों, जैसे संजय शिरसाट, योगेश कदम, दादा भुसे और माणिक कोकाटे, को उनके आचरण के चलते मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना चाहिए.

इस खुलासे ने महाराष्ट्र की राजनीति में हलचल मचा दी है. 'सामना' ने संकेत दिया है कि मौजूदा मंत्रिमंडल में जल्द फेरबदल हो सकता है. यह दावा न केवल बीजेपी और शिंदे गुट के लिए चुनौती है, बल्कि महाराष्ट्र की सियासत में नैतिकता और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है.