Why is the demand for Taliban increasing: अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को हाल ही में रूस ने आधिकारिक मान्यता देकर वैश्विक मंच पर हलचल मचा दी है. काबुल में तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी और रूस के राजदूत दिमित्री झिरनोव की मुलाकात के बाद यह ऐतिहासिक घोषणा हुई.
मुत्ताकी ने इसे साहसिक कदम बताया और दावा किया कि अब पाकिस्तान, चीन, भारत और अमेरिका जैसे देश भी तालिबान से संपर्क में हैं. आखिर क्यों एक समय आतंकी कहलाने वाला तालिबान आज वैश्विक मंच पर इतना महत्वपूर्ण हो गया है? आइए जानते हैं.
रणनीतिक भू-स्थिति
अफगानिस्तान की भौगोलिक स्थिति इसे दक्षिण एशिया, मध्य एशिया और पश्चिम एशिया के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी बनाती है. भारत, चीन, रूस और ईरान जैसे देशों के लिए यह एक रणनीतिक लैंड ब्रिज है. प्राचीन सिल्क रूट का हिस्सा रहा यह देश आज चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव और रूस के नए परिवहन कॉरिडोर के लिए अहम है. इसकी भू-राजनीतिक स्थिति इसे वैश्विक शक्तियों के लिए अनदेखा करना असंभव बनाती है.
तालिबान का ट्रंप कार्ड
अफगानिस्तान के पास लिथियम, तांबा, सोना और कोबाल्ट जैसे खनिजों का विशाल भंडार है, जिसकी अनुमानित कीमत 1 ट्रिलियन डॉलर है. इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी उद्योग में लिथियम की बढ़ती मांग ने तालिबान को सौदेबाजी का एक मजबूत हथियार दिया है. रूस और चीन जैसे देश अब इन संसाधनों पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं.
ऊर्जा और परिवहन कॉरिडोर में महत्व
अफगानिस्तान TAPI पाइपलाइन, CASA-1000 और Five Nations Railway Corridor जैसे प्रोजेक्ट्स में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच रूस और ईरान को वैकल्पिक ऊर्जा मार्गों की जरूरत है, जिसमें तालिबान का सहयोग अनिवार्य है.
हालांकि तालिबान की कट्टर नीतियां और मानवाधिकार हनन विवादास्पद हैं, फिर भी वैश्विक शक्तियां अब अपनी आर्थिक और रणनीतिक जरूरतों को प्राथमिकता दे रही हैं. रूस की मान्यता इसका स्पष्ट संकेत है.