ऑस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका के साथ दुर्लभ पृथ्वी सौदे, चीन पर निर्भरता होगी कम

भारत ने अपनी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति को सुरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. देश अब ऑस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका के साथ दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों के लिए सौदों पर जोर दे रहा है.

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India's strategic initiatives: भारत ने अपनी औद्योगिक और तकनीकी प्रगति को सुरक्षित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है. देश अब ऑस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका के साथ दुर्लभ पृथ्वी तत्वों और अन्य महत्वपूर्ण खनिजों के लिए सौदों पर जोर दे रहा है.

इसका मुख्य उद्देश्य चीन पर आयात निर्भरता को कम करना है, जो वर्तमान में वैश्विक दुर्लभ पृथ्वी आपूर्ति का लगभग 70% नियंत्रित करता है. यह रणनीति भारत के रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और हरित ऊर्जा क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है.

ऑस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका के साथ साझेदारी

भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ द्विपक्षीय समझौतों को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, जहां दुर्लभ पृथ्वी के भंडार और खनन तकनीक उपलब्ध हैं. इसके अलावा, लैटिन अमेरिका के 'लिथियम ट्राएंगल' (अर्जेंटीना, बोलीविया, और चिली) में लिथियम और अन्य खनिजों के लिए साझेदारी की बात चल रही है.

भारत की खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) इन क्षेत्रों में खनिज संपत्तियों के अधिग्रहण के लिए सक्रिय है. ये सौदे भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनाने की क्षमता रखते हैं.

राष्ट्रीय खनिज मिशन का योगदान

भारत सरकार ने 2025 में शुरू किए गए राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) के तहत दुर्लभ पृथ्वी तत्वों को प्राथमिकता दी है. इस मिशन का लक्ष्य घरेलू खनन, रिफाइनिंग क्षमता बढ़ाना, और विदेशों में खनिज संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल भारत को चीन के एकाधिकार के खिलाफ एक वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरने में मदद करेगी.

भविष्य की संभावनाएं

यह रणनीतिक कदम भारत की आर्थिक सुरक्षा और भू-राजनीतिक स्थिति को मजबूत करेगा. ऑस्ट्रेलिया और लैटिन अमेरिका के साथ साझेदारी न केवल आयात जोखिमों को कम करेगी, बल्कि भारत को हरित प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगी. यह भारत के लिए एक सुनहरा अवसर है, जो वैश्विक खनिज बाजार में नई ऊंचाइयों को छू सकता है.