'पत्नी और बेटी को देना ही होगा गुजारा भत्ता', इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पति की अर्जी ठुकराई

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी पत्नी के शिक्षित या पहले नौकरी करने मात्र से उसके भरण-पोषण के अधिकार को समाप्त नहीं किया जा सकता.

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Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी करते हुए कहा है कि किसी पत्नी के शिक्षित या पहले नौकरी करने मात्र से उसके भरण-पोषण के अधिकार को समाप्त नहीं किया जा सकता. अदालत ने पति गौरव गुप्ता की उस पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने परिवार न्यायालय के भरण-पोषण से संबंधित आदेश को चुनौती दी थी.

कानपुर नगर के परिवार न्यायालय ने 8 अक्टूबर 2024 को गौरव गुप्ता को आदेश दिया था कि वह अपनी पत्नी रितिका गुप्ता और बेटी को बीस-बीस हजार रुपये प्रति माह यानी कुल 40 हजार रुपये गुजारा भत्ता के रूप में दें. गौरव गुप्ता ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन अदालत ने इसे बरकरार रखा.

पति ने बताई आर्थिक तंगी

गौरव गुप्ता ने अदालत में दलील दी कि वह एक कंपनी में निदेशक हैं, परंतु कंपनी को भारी नुकसान हुआ है, जिसके कारण उनकी वार्षिक आय केवल 2.40 लाख रुपये (करीब 20 हजार रुपये मासिक) रह गई है. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पत्नी उच्च शिक्षित हैं, इंटीरियर डिजाइनिंग में डिग्रीधारक हैं और शादी से पहले काम करती थीं, इसलिए उनसे भी आर्थिक रूप से सहयोग की अपेक्षा की जानी चाहिए.

रितिका गुप्ता की ओर से कहा गया कि वह फिलहाल अपनी छोटी बेटी की देखभाल में व्यस्त हैं और किसी नौकरी में नहीं हैं. उन्होंने बताया कि यद्यपि वह योग्य हैं, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में काम करना संभव नहीं है. इसलिए उन्हें अपनी और बच्ची की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त भरण-पोषण की आवश्यकता है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि अगर पत्नी सचमुच अपने पति पर निर्भर है, चाहे वह शिक्षित हो या नौकरीपेशा, उसे गुजारा भत्ता पाने का पूरा अधिकार है. कोर्ट ने यह भी पाया कि गौरव गुप्ता ने अपनी वास्तविक आय छिपाने की कोशिश की थी. कोर्ट ने कहा कि अगर कंपनी को घाटा हुआ था, तो यह स्पष्ट नहीं है कि उसके माता-पिता, जो उसी कंपनी में निदेशक हैं, का वेतन कैसे बढ़ा. 

कोर्ट ने इसे पति द्वारा गुजारा भत्ता से बचने का प्रयास करार दिया. जस्टिस मदन पाल सिंह की एकल पीठ ने कहा कि एक सक्षम और स्वस्थ पुरुष से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त आय अर्जित करे. कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए गौरव गुप्ता की याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया.