ताजिकिस्तान से इटली तक बुर्का बैन पर बहस! धार्मिक आजादी या सांस्कृतिक पहचान की रक्षा?

Hijab ban: इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने बुर्के और नकाब पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. सरकार का तर्क है कि यह कदम इस्लामिक अलगाववाद को खत्म करने और समाज में एकरूपता लाने के लिए जरूरी है.

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Tajikistan hijab ban: इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी की सरकार ने बुर्के और नकाब पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. सरकार का तर्क है कि यह कदम इस्लामिक अलगाववाद को खत्म करने और समाज में एकरूपता लाने के लिए जरूरी है. प्रस्तावित विधेयक के तहत यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों जैसे स्कूल, दफ्तर, दुकान या विश्वविद्यालय में बुर्का या नकाब पहनता है, तो उस पर 3 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा.

कानून फ्रांस से प्रेरित

ब्रदर्स ऑफ इटली पार्टी के सांसद गैलेजो बिग्नामी ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य समाज को कट्टरवाद से मुक्त करना है. उनके अनुसार, देश में समानांतर समाज नहीं बनने देना सरकार की प्राथमिकता है. वहीं पार्टी की सांसद एंड्रिया डेलमास्ट्रो ने कहा कि यह कानून फ्रांस से प्रेरित है, जहां पहले से ही बुर्का पर रोक है. उन्होंने कहा कि इटली में धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान है, लेकिन देश के कानून और मूल्यों को सर्वोपरि रखना भी आवश्यक है.

विधेयक पेश करने वाली सांसद सारा केलोनी ने साफ किया कि इटली में शरिया कानून को देश के संवैधानिक कानूनों से ऊपर नहीं रखा जा सकता. मेलोनी सरकार का मानना है कि बुर्का केवल धार्मिक प्रतीक नहीं, बल्कि सामाजिक अलगाव का प्रतीक बन चुका है, जिसे खत्म करना देश की एकता और सुरक्षा के लिए आवश्यक है.

राष्ट्रीय संस्कृति के लिए विदेशी

दिलचस्प बात यह है कि न केवल इटली जैसे यूरोपीय देश, बल्कि मध्य एशिया में ताजिकिस्तान - जहां 90 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है. 2024 में हिजाब और बुर्का पर प्रतिबंध लगा दिया है. ताजिकिस्तान सरकार ने इस्लामी पोशाक को "विदेशी संस्कृति" का हिस्सा और ताजिक पहचान के खिलाफ बताया है.

राष्ट्रपति इमामोली रहमान का कहना था कि हिजाब ताजिक संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह बाहरी देशों की धार्मिक परंपराओं से प्रभावित है. इसी विचार के तहत “ऑन रेगुलेशन ऑफ हॉलिडेज एंड सेरेमनीज” नामक कानून में संशोधन किया गया. इस संशोधन के बाद ऐसे सभी परिधानों की बिक्री, आयात, प्रचार और सार्वजनिक रूप से पहनने पर रोक लगा दी गई जिन्हें "राष्ट्रीय संस्कृति के लिए विदेशी" माना गया.

कानून का उल्लंघन करने वालों पर 7,920 सोमोनी (लगभग 747 डॉलर) से लेकर 39,500 सोमोनी (करीब 3,724 डॉलर) तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. हिजाब और बुर्का पर यह प्रतिबंध राष्ट्रपति रहमान के उस अभियान का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ताजिक संस्कृति को बढ़ावा देना और सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक प्रदर्शन को सीमित करना है.

काले कपड़ों को भी नकारात्मक माना

2018 में ताजिक सरकार ने महिलाओं के लिए एक 376 पन्नों की गाइडबुक जारी की थी, जिसमें परंपरागत पोशाकों का विवरण दिया गया था. इसमें बताया गया था कि रंग-बिरंगे स्कार्फ को सिर के पीछे बांधना ताजिक परंपरा के अनुसार स्वीकार्य है, लेकिन चेहरे और गले को ढकने पर रोक है. काले कपड़ों को भी नकारात्मक माना गया और अंतिम संस्कार जैसे मौकों पर नीले वस्त्र और सफेद स्कार्फ पहनने की सलाह दी गई.

दोनों देशों में लागू या प्रस्तावित ये कानून इस बहस को फिर से जीवित कर रहे हैं कि धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक पहचान के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए. जहां समर्थक इसे सुरक्षा और राष्ट्रीय संस्कृति की रक्षा का कदम मानते हैं, वहीं आलोचक इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हमला बताते हैं.