Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश सरकार से पूछा कि यदि कोई राजनीतिक दल जाति आधारित रैली आयोजित करता है, तो राज्य सरकार क्या कार्रवाई करेगी. अदालत ने यह सवाल तब उठाया जब सरकार ने पूर्व आदेश के बावजूद इस मुद्दे पर कोई स्पष्ट हलफनामा दाखिल नहीं किया.
तीन दिनों के भीतर हलफनामा
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर के लिए तय की है. सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार से नाराजगी जताते हुए कहा कि 7 अगस्त 2024 को दिए गए आदेश के अनुपालन में तीन दिनों के भीतर हलफनामा दाखिल किया जाए. अदालत ने यह भी चेतावनी दी कि यदि ऐसा नहीं किया गया, तो संबंधित प्रमुख सचिव को अगली सुनवाई पर स्वयं उपस्थित होना होगा.
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता ने बताया कि 21 सितंबर 2025 को सरकार ने एक आदेश जारी किया है, जिसके तहत राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाया गया है. इस पर अदालत ने सवाल उठाया कि जब आदेश पहले ही जारी हो चुका है, तो हलफनामा दाखिल करने में देरी क्यों की जा रही है.
समाज में जातिगत विभाजन
पिछली सुनवाई में निर्वाचन आयोग ने भी अदालत को सूचित किया था कि आदर्श आचार संहिता के तहत जाति आधारित रैलियों पर पहले से ही रोक लगाई गई है. आयोग ने स्पष्ट किया था कि किसी भी राजनीतिक दल को ऐसी गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जा सकती, जो समाज में जातिगत विभाजन को बढ़ावा दें.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 11 जुलाई 2013 को ही प्रदेश में राजनीतिक दलों द्वारा जाति आधारित रैलियों पर अंतरिम प्रतिबंध लगा दिया था. अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि जाति व्यवस्था समाज को विभाजित करती है और भेदभाव को प्रोत्साहित करती है, जो संविधान की भावना और मौलिक अधिकारों के खिलाफ है.