भारत की महिला क्रिकेट टीम ने इतिहास रचते हुए वीमेंस वर्ल्ड कप 2025 का खिताब अपने नाम कर लिया है. कप्तान हरमनप्रीत कौर की अगुवाई में टीम इंडिया ने शानदार प्रदर्शन किया और पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. लेकिन इस ऐतिहासिक जीत के पीछे एक और शख्सियत का महत्वपूर्ण योगदान रहा. टीम इंडिया के हेड कोच अमोल मजूमदार. फाइनल जीत के बाद जब हरमनप्रीत कौर ने मैदान पर अपने कोच के पैर छुए, तो यह दृश्य हर भारतीय के दिल को छू गया.
अमोल मजूमदार कौन हैं?
अमोल मजूमदार भारतीय घरेलू क्रिकेट के उन दिग्गज खिलाड़ियों में से हैं, जिन्होंने मैदान पर अद्भुत प्रदर्शन किया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका कभी नहीं मिला. मजूमदार उस दौर में खेले जब भारतीय टीम में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली जैसे दिग्गज मौजूद थे. उन्होंने फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 171 मैच खेले, जिनमें 11,167 रन बनाए और 30 शतक जड़े. उनके प्रदर्शन ने उन्हें घरेलू क्रिकेट का बड़ा नाम बना दिया, लेकिन भारतीय टीम की भीड़ में उन्हें अपनी जगह नहीं मिल सकी. इसके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और क्रिकेट के प्रति अपने जुनून को बरकरार रखा.
पिता की सीख ने बदली जिंदगी
अमोल मजूमदार ने 1993 में अपना क्रिकेट करियर शुरू किया था और 2002 तक राष्ट्रीय टीम में चयन के लिए संघर्ष करते रहे. लेकिन जब उन्हें चयन नहीं मिला, तो वे टूट से गए थे. ऐसे समय में उनके पिता अनिल मजूमदार ने उन्हें समझाया — “खेल छोड़ना नहीं, तेरे अंदर अभी भी क्रिकेट बाकी है.” यह एक वाक्य उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गया. इसी प्रेरणा ने उन्हें फिर से खड़ा किया और आगे चलकर कोचिंग की राह दिखाई.
कोच के रूप में नई पहचान
2014 में क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद अमोल मजूमदार ने कोचिंग करियर की शुरुआत की. उन्होंने नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और आईपीएल फ्रेंचाइज़ी राजस्थान रॉयल्स के साथ भी काम किया. 2006 में उन्होंने मुंबई को रणजी ट्रॉफी जिताई थी, जिससे उनकी नेतृत्व क्षमता का अंदाजा लगाया जा सकता है.
अमोल मजूमदार 2023 में भारतीय महिला क्रिकेट टीम के हेड कोच बने. उनके मार्गदर्शन में टीम ने अनुशासन, आत्मविश्वास और रणनीति का नया रूप अपनाया. नतीजा यह रहा कि 2025 में भारतीय महिला टीम ने पहली बार वीमेंस वर्ल्ड कप का खिताब जीत लिया. फाइनल मैच के बाद कप्तान हरमनप्रीत कौर ने जब भावुक होकर अमोल मजूमदार के पैर छुए, तो यह सिर्फ सम्मान का इजहार नहीं था, बल्कि उस संघर्ष और समर्पण की कहानी का प्रतीक था जो इस जीत के पीछे छिपा है.