Foreign exchange reserves: भारत के आर्थिक परिदृश्य में एक सकारात्मक खबर ने सबका ध्यान खींचा है. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने हाल ही में घोषणा की कि 5 सितंबर 2025 तक देश का विदेशी मुद्रा भंडार 4.03 अरब डॉलर की वृद्धि के साथ 698.27 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया है.
यह उपलब्धि ऐसे समय में आई है, जब अगस्त में रिटेल महंगाई दर बढ़कर 2.07% हो गई, जो जुलाई में 1.61% थी. इसके बावजूद, RBI का यह आंकड़ा देश की आर्थिक स्थिरता को दर्शाता है, खासकर तब जब भारत को अमेरिका के 50% टैरिफ जैसे वैश्विक दबावों का सामना करना पड़ रहा है.
विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में उल्लेखनीय वृद्धि
RBI के आंकड़ों के अनुसार, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां (FCA), जो भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा हैं, 54 करोड़ डॉलर बढ़कर 584.47 अरब डॉलर तक पहुंच गई हैं. इन परिसंपत्तियों में डॉलर के अलावा यूरो, पाउंड और येन जैसी प्रमुख वैश्विक मुद्राएं शामिल हैं. यह वृद्धि भारत की वैश्विक व्यापार और वित्तीय स्थिरता में मजबूती का संकेत देती है.
सोने के भंडार ने लगाई छलांग
सोने के भंडार में भी इस सप्ताह शानदार इजाफा देखा गया. RBI के अनुसार, गोल्ड रिजर्व 3.53 अरब डॉलर बढ़कर 90.29 अरब डॉलर पर पहुंच गया है. यह वृद्धि भारत की आर्थिक नीतियों और सोने के प्रति बढ़ते निवेश को दर्शाती है. दूसरी ओर, विशेष आहरण अधिकार (SDRs) 3.4 करोड़ डॉलर घटकर 18.74 अरब डॉलर पर आ गए, जबकि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) में भारत की रिजर्व पोजिशन 20 लाख डॉलर बढ़कर 4.75 अरब डॉलर हो गई.
रुपये को स्थिरता प्रदान करना
RBI समय-समय पर विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करता है ताकि रुपये के मूल्य में अस्थिरता को रोका जा सके. इसके लिए वह डॉलर की खरीद-बिक्री करता है. RBI के अधिकारियों का कहना है कि यह हस्तक्षेप किसी निश्चित विनिमय दर को लक्षित करने के लिए नहीं, बल्कि बाजार को स्थिर रखने के लिए किया जाता है. यह रणनीति भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक उतार-चढ़ाव से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
साप्ताहिक आंकड़ों का महत्व
भारत में विदेशी मुद्रा भंडार के आंकड़े हर शुक्रवार को RBI द्वारा जारी किए जाते हैं. ये आंकड़े पिछले सप्ताह के आधार पर होते हैं और इसमें चार प्रमुख घटक शामिल होते हैं: विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियां, गोल्ड रिजर्व, SDRs, और IMF में रिजर्व पोजिशन. ये आंकड़े निवेशकों और नीति निर्माताओं के लिए देश की आर्थिक स्थिति का एक महत्वपूर्ण संकेतक हैं.