अल्कलाइन वॉटर से कैंसर नहीं रुकता, वैज्ञानिक रिसर्च में बड़ा खुलासा, जानें सच्चाई

आजकल हेल्थ और वेलनेस की दुनिया में अल्कलाइन वॉटर का बोलबाला है. सुपरमार्केटों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक, इसे एक चमत्कारी पेय के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.

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Alkaline Water Cancer Prevention: आजकल हेल्थ और वेलनेस की दुनिया में अल्कलाइन वॉटर का बोलबाला है. सुपरमार्केटों से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक, इसे एक चमत्कारी पेय के रूप में प्रचारित किया जा रहा है. दावे हैं कि यह ऊर्जा स्तर बढ़ाता है, बुढ़ापे को रोकता है और यहां तक कि कैंसर जैसी घातक बीमारी से सुरक्षा प्रदान करता है.

ये दावे सुनने में आकर्षक लगते हैं, खासकर जब हर व्यक्ति त्वरित और सरल समाधान की तलाश में रहता है. लेकिन क्या ये दावे वैज्ञानिक रूप से सिद्ध हैं?

हालिया रिसर्च रिपोर्ट्स में एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि अल्कलाइन वॉटर कैंसर को रोकने में बिल्कुल अप्रभावी है. आइए, इसकी गहराई से पड़ताल करते हैं और समझते हैं कि यह ट्रेंड कितना विश्वसनीय है या सिर्फ एक व्यावसायिक चाल है.

अल्कलाइन वॉटर के असली फायदे क्या हैं?

अल्कलाइन वॉटर को लेकर जो हाइप है, वह आंशिक रूप से सही है, लेकिन ज्यादातर अतिरंजित. वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका मुख्य लाभ पेट में एसिड की मात्रा को अस्थायी रूप से कम करना है. इससे एसिडिटी या गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स जैसी समस्याओं में कुछ लोगों को तत्काल राहत मिल सकती है.

हालांकि, यह प्रभाव लंबे समय तक नहीं टिकता और जल्द ही सामान्य हो जाता है.इसके अलावा, अल्कलाइन वॉटर शरीर को हाइड्रेट रखने में मदद करता है, लेकिन यह कोई विशेष गुण नहीं है. साधारण साफ पानी भी यही काम बखूबी करता है.

विभिन्न अध्ययनों में यह पाया गया है कि अल्कलाइन वॉटर पीने से मूत्र (यूरिन) का pH स्तर थोड़ा बदल सकता है, लेकिन रक्त (ब्लड) का pH स्तर कभी प्रभावित नहीं होता. मानव शरीर का ब्लड pH हमेशा 7.35 से 7.45 के संकुचित रेंज में रहता है, चाहे हम कोई भी आहार या पेय ग्रहण करें. शरीर की प्राकृतिक प्रक्रियाएं इसे संतुलित रखती हैं, इसलिए अल्कलाइन वॉटर कोई क्रांतिकारी बदलाव नहीं लाता.

कैंसर से बचाव के दावों की सच्चाई

कैंसर और अल्कलाइन वॉटर के बीच का कनेक्शन 1930 के दशक से जुड़ा हुआ है. उस समय वैज्ञानिक ओटो वॉरबर्ग ने खोजा था कि कैंसर कोशिकाएं ऑक्सीजन की कमी और अम्लीय (एसिडिक) वातावरण में तेजी से बढ़ती हैं. इस खोज के आधार पर एक गलत धारणा फैल गई कि शरीर को क्षारीय (अल्कलाइन) बनाने से कैंसर को रोका जा सकता है.

लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है. कैंसर कोशिकाएं स्वयं अपने आसपास अम्लीय माहौल पैदा करती हैं, न कि पूरा शरीर अम्लीय होता है.इस भ्रम के कारण लोग सोचने लगे कि अल्कलाइन वॉटर पीकर शरीर का pH बढ़ाकर कैंसर से बचा जा सकता है.

हालिया अध्ययन, जैसे कि अमेरिकन कैंसर सोसाइटी और अन्य स्वास्थ्य संगठनों की रिपोर्ट्स, पुष्टि करती हैं कि अल्कलाइन वॉटर का कैंसर रोकथाम से कोई सीधा संबंध नहीं है. ये दावे मुख्य रूप से मार्केटिंग पर आधारित हैं, न कि ठोस वैज्ञानिक प्रमाणों पर.

pH स्केल को समझें

pH स्केल को समझना इस विषय की कुंजी है. यह 0 से 14 तक की रेंज में मापा जाता है:0 से 7 तक: अम्लीय (एसिडिक)

  • 7: न्यूट्रल (जैसे सामान्य पीने का पानी)
  • 7 से 14 तक: क्षारीय (अल्कलाइन)

अल्कलाइन वॉटर का pH आमतौर पर 8 या इससे ऊपर होता है. कैंसर से जुड़े दावे इसी स्केल की सरल व्याख्या से प्रेरित हैं, लेकिन शरीर का pH बैलेंस किडनी, फेफड़े और अन्य अंगों द्वारा सख्ती से नियंत्रित होता है. बाहरी पेय से इसे प्रभावित करना लगभग असंभव है.

अधिक अल्कलाइन वॉटर के जोखिम

वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि अल्कलाइन वॉटर कैंसर रोकने का कोई प्रमाण नहीं है, बल्कि अत्यधिक सेवन से नुकसान हो सकता है. अगर शरीर में क्षारीयता बहुत बढ़ जाए, तो अल्कलोसिस नामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है.

इसमें प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है, जिससे एंजाइम्स ठीक से कार्य नहीं करते, ऑक्सीजन ऊतकों तक नहीं पहुंच पाती और पोटैशियम-कैल्शियम जैसे महत्वपूर्ण खनिज असंतुलित हो जाते हैं. इसके लक्षणों में मांसपेशियों में ऐंठन, हाथ-पैरों में झुनझुनी, उल्टी, चक्कर आना शामिल हैं. गंभीर मामलों में हृदय गति में अनियमितता या दौरा पड़ने का खतरा भी बढ़ जाता है.