अमेरिकी कांग्रेस की ताज़ा रिपोर्ट में एक बड़ा खुलासा हुआ है, जिसके अनुसार मई 2025 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष का चीन ने रणनीतिक रूप से इस्तेमाल किया. रिपोर्ट के मुताबिक, बीजिंग ने इस युद्ध को अपने आधुनिक हथियारों को वास्तविक युद्धक्षेत्र में परखने का मौका माना और पाकिस्तान के साथ मिलकर इसे एक तरह के "कॉम्बैट टेस्टिंग ग्राउंड" की तरह इस्तेमाल किया. इसके बाद, चीन ने इन्हीं परीक्षणों के नतीजों को बढ़ा-चढ़ाकर मुस्लिम देशों में हथियार बेचने के लिए आक्रामक प्रचार किया.
पहली बार युद्ध में उतरे चीन के हाई-टेक हथियार
US-China Economic and Security Review Commission (USCC) की रिपोर्ट बताती है कि इस संघर्ष में चीन के कई उन्नत हथियारों ने पहली बार सक्रिय युद्ध में भाग लिया. इनमें शामिल हैं,
रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने इस पूरी लड़ाई को अपने हथियारों का फील्ड एक्सपेरिमेंट मानते हुए इसके परिणामों का विश्लेषण किया और फिर दुनिया भर में अपने हथियारों की भव्य मार्केटिंग शुरू कर दी.
पाकिस्तान के युद्ध दावों को बनाया मार्केटिंग टूल
पाकिस्तान ने संघर्ष के बाद कई बड़े दावे किए थे. उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने संसद में कहा था कि पाकिस्तानी J-10C जेट्स ने भारतीय वायुसेना के कई विमानों,यहाँ तक कि रफाल तक,को मार गिराया.
USCC रिपोर्ट मानती है कि इनमें अतिशयोक्ति हो सकती है, लेकिन चीन ने इन दावों का जमकर फायदा उठाया. बीजिंग के दूतावासों ने दुनिया भर में इन बयानों को प्रमोट किया और इन्हें पश्चिमी हथियारों से बेहतर विकल्प के रूप में चीनी हथियारों के प्रचार में इस्तेमाल किया.
AI तस्वीरों और फर्जी वीडियो का इस्तेमाल
रिपोर्ट में सबसे गंभीर आरोप यह है कि चीन ने दुष्प्रचार अभियान चलाने के लिए सोशल मीडिया पर फर्जी अकाउंट्स का सहारा लिया.
इन अकाउंट्स से-
भारतीय विमानों के "गिराए जाने" के सबूत के रूप में प्रसारित किए गए.
रिपोर्ट का दावा है कि इस दुष्प्रचार के बाद इंडोनेशिया ने फ्रांसीसी रफाल की खरीद प्रक्रिया रोक दी, जिससे चीन को रणनीतिक लाभ मिला.
चीनी हथियारों पर पाकिस्तान की बढ़ती निर्भरता
USCC रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान की सैन्य खरीद का बड़ा हिस्सा अब चीन पर निर्भर है.
जून 2025 में चीन ने पाकिस्तान को,
बेचने की पेशकश भी की. SIPRI के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में पाकिस्तान के 81% हथियार आयात चीन से हुए हैं, जो दोनों देशों की गहरी सामरिक निर्भरता को दर्शाता है.