संयुक्त राज्य अमेरिका इस समय अपने इतिहास के सबसे लंबे सरकारी शटडाउन का सामना कर रहा है. यह संकट अब अपने 37वें दिन में प्रवेश कर चुका है, जिसने 2018-19 में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान बने 35 दिनों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. उस समय विवाद की जड़ ट्रंप की ज़िद थी, और इस बार भी कहानी वैसी ही है. बस मुद्दा बदल गया है. इस बार, विवाद अफोर्डेबल केयर एक्ट, जिसे "ओबामाकेयर" भी कहा जाता है, से जुड़े टैक्स क्रेडिट के विस्तार को लेकर है.
क्यों हुआ शटडाउन?
डेमोक्रेटिक पार्टी चाहती है कि "ओबामाकेयर" से जुड़ी टैक्स क्रेडिट योजना को 2025 के बाद भी जारी रखा जाए, ताकि लाखों अमेरिकी सस्ती हेल्थ इंश्योरेंस ले सकें. लेकिन रिपब्लिकन पार्टी, जिसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे हैं, इस विस्तार का कड़ा विरोध कर रही है. रिपब्लिकन सांसदों का कहना है कि यह योजना सरकारी खर्च को बढ़ाएगी और निजी बीमा कंपनियों को नुकसान पहुंचाएगी.
बजट पर सहमति न बनने के कारण 1 अक्टूबर से अमेरिकी सरकार आंशिक रूप से ठप पड़ी है. नतीजतन, लाखों सरकारी कर्मचारी वेतन से वंचित हैं और कई जरूरी सेवाएं बाधित हो चुकी हैं.
14 बार कोशिश
पिछले एक महीने में अमेरिकी कांग्रेस ने बजट पारित कराने के लिए 14 बार प्रयास किया, लेकिन हर बार नाकामी मिली. सीनेट में बिल पारित करने के लिए 60 वोटों की जरूरत होती है, जबकि रिपब्लिकन के पास केवल 53 सीटें हैं. ताजा मतदान में परिणाम 54-44 रहा, यानी रिपब्लिकन एक भी डेमोक्रेट को अपने पक्ष में नहीं ला सके.
वहीं, प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) के स्पीकर माइक जॉनसन ने सदन को सत्र से बाहर रखकर दबाव और बढ़ा दिया है. अब पूरा दारोमदार सीनेट पर है, जहां गतिरोध लगातार गहराता जा रहा है.
7 अरब डॉलर का आर्थिक झटका
कांग्रेसनल बजट ऑफिस (CBO) की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक इस शटडाउन से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लगभग 7 अरब डॉलर का नुकसान हो चुका है. अगर यह स्थिति छह हफ्तों तक बनी रही, तो नुकसान 11 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है. इसका बड़ा कारण यह है कि लाखों सरकारी कर्मचारी वेतन न मिलने से खर्च कम कर चुके हैं. इसके अलावा, सरकारी ठेके और अनुदान ठप होने से आर्थिक गतिविधियों पर भी नकारात्मक असर पड़ा है.
42 मिलियन लोग प्रभावित
अमेरिका की 4 करोड़ से अधिक आबादी हर महीने फूड स्टैम्प योजना पर निर्भर है. लेकिन 1 नवंबर से यह भुगतान रुक गया है. दो संघीय अदालतों ने ट्रंप प्रशासन को आदेश दिया था कि $4.65 अरब डॉलर की इमरजेंसी फंड से राहत दी जाए, मगर नवंबर के लिए कुल $9 अरब की जरूरत है. यानी आधी जरूरत भी पूरी नहीं हुई है. कई राज्यों में गरीब परिवारों को भोजन के लिए सामुदायिक रसोई और एनजीओ की मदद पर निर्भर रहना पड़ रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह स्थिति दो हफ्ते और बनी रही, तो खाद्य संकट गंभीर रूप ले सकता है.
राष्ट्रपति ट्रंप ने दावा किया कि एक "देशभक्त" ने $130 मिलियन डॉलर दान किए हैं ताकि सैनिकों को वेतन दिया जा सके. बाद में न्यूयॉर्क टाइम्स ने खुलासा किया कि यह दान अरबपति टिमोथी मेलॉन ने दिया था. लेकिन जब यह रकम 13 लाख सक्रिय सैनिकों में बांटी जाती है, तो प्रति सैनिक मात्र $100 ही मिलते हैं. जो बेहद मामूली राहत है.
हवाई यातायात पर संकट
फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) के अनुसार, 31 अक्टूबर से 2 नवंबर के बीच 16,700 से ज्यादा उड़ानें देरी से चलीं और 2,282 उड़ानें रद्द करनी पड़ीं. इसका कारण यह है कि एयर ट्रैफिक कंट्रोलर (ATC) को वेतन नहीं मिल रहा और कई थकान या विरोध के कारण अनुपस्थित हैं. न्यूयॉर्क, शिकागो और लॉस एंजिलिस जैसे प्रमुख एयरपोर्ट्स पर 80% तक स्टाफ की कमी दर्ज की गई है. FAA के 30 बड़े एयरपोर्ट्स में से आधे में संचालन गंभीर रूप से प्रभावित है.
14 लाख कर्मचारी प्रभावित
करीब 6.7 लाख संघीय कर्मचारी घर पर हैं, जबकि 7.3 लाख "जरूरी सेवाओं" वाले कर्मचारी काम पर आ तो रहे हैं, लेकिन वेतन नहीं पा रहे. ट्रंप प्रशासन का दावा है कि इससे रोजाना $400 मिलियन की "बचत" हो रही है, लेकिन अर्थशास्त्री इसे "आर्थिक सुस्ती" का संकेत बता रहे हैं. फिलहाल इस गतिरोध का कोई स्पष्ट अंत नजर नहीं आ रहा है. डेमोक्रेट्स टैक्स क्रेडिट विस्तार पर अड़े हैं, जबकि ट्रंप और रिपब्लिकन इसे जो बाइडन प्रशासन की विफलता बता रहे हैं. अमेरिका की आम जनता के लिए यह संकट सबसे कठिन साबित हो रहा है. नौकरी, भोजन और इलाज तीनों के लिए लोग अब सरकार की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं.