वार्ता के नाम पर धमकी! पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ बोले, 'अफगानिस्तान पर हमला करेंगे'

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चल रही शांति वार्ता अब धमकियों के साए में आ गई है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर इस्तांबुल शांति वार्ता विफल होती है, तो पाकिस्तान अफगानिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा.

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इस्तांबुल: अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच चल रही शांति वार्ता अब धमकियों के साए में आ गई है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में स्पष्ट चेतावनी दी है कि अगर इस्तांबुल शांति वार्ता विफल होती है, तो पाकिस्तान अफगानिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने से पीछे नहीं हटेगा. आसिफ के इस बयान ने न केवल कूटनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है, बल्कि दोनों देशों के बीच तनाव को और गहरा कर दिया है.

तनाव बढ़ने की नई वजह

पाकिस्तान लंबे समय से अफगानिस्तान पर आरोप लगाता रहा है कि काबुल सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के आतंकियों को अपने इलाके में शरण दे रही है. इस वजह से दोनों देशों की सीमाओं पर हिंसक घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ता डीजी आईएसपीआर के मुताबिक, साल 2025 में अब तक 1,073 पाकिस्तानी सैनिक और सुरक्षा कर्मी मारे जा चुके हैं, जिनमें से लगभग 70-80 प्रतिशत हमले टीटीपी से जुड़े विद्रोही गुटों ने किए हैं. इससे पाकिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था पर गहरा दबाव पड़ा है.

सख्त भाषा या अंदरूनी बेचैनी?

विश्लेषकों का मानना है कि ख्वाजा आसिफ का बयान सिर्फ बाहरी दबाव का नतीजा नहीं, बल्कि पाकिस्तान की अंदरूनी कमजोरियों का प्रतिबिंब भी है. देश इस समय करीब 270 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है. आर्थिक संकट, राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ते आतंरिक विद्रोह ने सेना और सरकार दोनों को असहज कर रखा है. ऐसे में बाहरी मोर्चे पर ताकत दिखाना, जनता का ध्यान घरेलू समस्याओं से हटाने का एक तरीका भी माना जा रहा है.

सीमित क्षमता

हालांकि पाकिस्तान परमाणु हथियारों से लैस देश है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि वह लंबे समय तक किसी बड़े सैन्य संघर्ष को झेलने की स्थिति में नहीं है. बार-बार की सीमा झड़पों और आतंक विरोधी अभियानों ने पहले ही उसकी सैन्य क्षमताओं को थका दिया है. इस परिस्थिति में युद्ध की धमकी देना ज्यादा राजनीतिक रणनीति लगता है, न कि कोई व्यावहारिक विकल्प.

शांति की राह या टकराव का नया दौर?

इस्तांबुल में चल रही मौजूदा वार्ता को दोनों देशों के बीच आखिरी संवाद की कड़ी माना जा रहा है. अगर यह बातचीत भी असफल रही, तो सीमा पर तनाव और बढ़ सकता है. कई रक्षा विशेषज्ञों ने पाकिस्तान को सलाह दी है कि उसे अब धमकी की भाषा छोड़कर स्थायी समाधान की दिशा में कदम बढ़ाने चाहिए. क्योंकि इतिहास गवाह है. बल का प्रयोग केवल अस्थायी राहत देता है, स्थायी शांति नहीं.