सिर्फ Gen-Z का समर्थन नहीं, इन 4 ठोस कारणों से सुशीला कार्की को मिली नेपाल में अंतरिम प्रधानमंत्री की कमान

नेपाल की राजनीतिक हलचल में एक नया मोड़ आ गया है. केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद देश में अंतरिम सरकार की कमान संभालने के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम तय हो गया है. 73 वर्षीय कार्की को न केवल युवा पीढ़ी यानी जेन-जेड (Gen-Z) का जबरदस्त समर्थन मिला है, बल्कि उनकी नियुक्ति के पीछे कई रणनीतिक और संवैधानिक कारण भी हैं. 

Date Updated
फॉलो करें:

Nepal Interim PM: नेपाल की राजनीतिक हलचल में एक नया मोड़ आ गया है. केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद देश में अंतरिम सरकार की कमान संभालने के लिए पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुशीला कार्की का नाम तय हो गया है. 73 वर्षीय कार्की को न केवल युवा पीढ़ी यानी जेन-जेड (Gen-Z) का जबरदस्त समर्थन मिला है, बल्कि उनकी नियुक्ति के पीछे कई रणनीतिक और संवैधानिक कारण भी हैं. 

राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल और सेना प्रमुख अशोक राज सिग्देल के साथ उनकी महत्वपूर्ण चर्चा के बाद यह फैसला लिया गया. शपथ ग्रहण से पहले कार्की ने Gen-Z प्रतिनिधियों से भी मुलाकात की, जहां उन्होंने छह महीने के अंदर आम चुनाव कराने का वादा किया. ओली के इस्तीफे के बाद कुलमान घिसिंग, बालेन शाह और दुर्गा प्रसाई जैसे नामों की चर्चा जोरों पर थी, लेकिन अंततः कार्की ही मैदान में आ गईं. आइए जानते हैं कि आखिर क्यों कार्की को यह जिम्मेदारी सौंपी गई?

1. न्यायिक अनुभव और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख

सुशीला कार्की नेपाल की पहली और एकमात्र महिला मुख्य न्यायाधीश रह चुकी हैं, जिन्होंने 2016 से 2019 तक सुप्रीम कोर्ट की कमान संभाली. अन्य दावेदारों की तुलना में उनका यह अनुभव बेजोड़ है. सत्ता के गलियारों और प्रशासनिक व्यवस्था की गहरी समझ रखने वाली कार्की ने अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार पर कड़े प्रहार किए.

उन्होंने कई फैसलों में सिस्टम की कमियों पर खुलकर टिप्पणी की, जो Gen-Z आंदोलन की मुख्य मांग भ्रष्टाचार मुक्त नेपाल से पूरी तरह मेल खाती है. यह अनुभव उन्हें अंतरिम पीएम के रूप में चुनाव प्रक्रिया सुचारू रूप से चलाने और सुधारों को लागू करने में सक्षम बनाता है.

2. भारत से गहरे रिश्ते और पड़ोसी नीति में मजबूती

कार्की का भारत से विशेष लगाव रहा है, जो नेपाल की राजनीति में एक महत्वपूर्ण फैक्टर है. उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) से राजनीति विज्ञान में मास्टर्स की डिग्री हासिल की. उनके नाम पर सहमति बनते ही उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जिक्र करते हुए आभार व्यक्त किया, जो नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करने का संकेत देता है.

नेपाल जैसे भू-सीमित देश में भारत का प्रभाव हमेशा से अहम रहा है. कार्की की नियुक्ति से दोनों देशों के बीच स्थिरता बनी रहेगी, खासकर आर्थिक और सुरक्षा मामलों में. Gen-Z आंदोलन ने भी उनकी इस निष्पक्ष विदेश नीति को सराहा है.

3. कोई दुश्मनी नहीं

कार्की का कोई राजनीतिक गुटों से जुड़ाव नहीं है, जो उन्हें एक आदर्श उम्मीदवार बनाता है. इसके विपरीत, कुलमान घिसिंग का ओली से और बालेन शाह का नेपाली कांग्रेस से पुराना वैमनस्य रहा है. यदि इनमें से किसी को चुना जाता, तो संवैधानिक विवाद खड़े हो सकते थे, जिससे अस्थिरता बढ़ती. राष्ट्रपति और सेना ने तटस्थ रास्ता अपनाते हुए कार्की को चुना, जो सभी पक्षों को स्वीकार्य है. Gen-Z ने ऑनलाइन सर्वे के जरिए उनकी तटस्थता को प्राथमिकता दी, जिससे यह फैसला बिना किसी बवाल के लागू हो सका.

4. संवैधानिक संकट से बचाव का चतुर कदम

नेपाल के संविधान में अंतरिम प्रधानमंत्री की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है, जिससे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती की आशंका थी. पूर्व मुख्य न्यायाधीश को इस पद पर नियुक्त कर राष्ट्रपति ने संभावित संकट को टालने की कोशिश की है. कार्की की न्यायिक पृष्ठभूमि इस नियुक्ति को वैधता प्रदान करती है. Gen-Z आंदोलन, जो सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ था, ने भी इसी वजह से उनका समर्थन किया. उनकी नियुक्ति से न केवल शांति बहाल होगी, बल्कि सिस्टम में आवश्यक सुधार भी संभव होंगे.