US Supreme Court: अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक ऐसा मामला सुना जा रहा है जिसे अमेरिकी राजनीति का भविष्य बदलने वाला माना जा रहा है. पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस सुनवाई को “अमेरिकी इतिहास का सबसे अहम फैसला” तक करार दिया है. इस ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई में भारतीय मूल के नामी वकील नील कत्याल मुख्य भूमिका निभा रहे हैं. वे राष्ट्रपति के आर्थिक अधिकारों की सीमाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने दलीलें पेश करेंगे.
मामला क्या है?
यह केस 1977 के International Emergency Economic Powers Act (IEEPA) से जुड़ा है. सवाल यह है कि क्या अमेरिकी राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल का हवाला देते हुए बड़े पैमाने पर टैरिफ (आयात कर) लगा सकता है? या फिर यह शक्ति केवल अमेरिकी कांग्रेस को प्राप्त है?
नील कत्याल का तर्क है कि टैक्स और टैरिफ लगाने का अधिकार संविधान के अनुसार कांग्रेस के पास होना चाहिए. यदि राष्ट्रपति को यह अधिकार दे दिया गया तो यह शक्ति संतुलन पर बड़ा खतरा बन सकता है. दूसरी ओर, ट्रंप ने दावा किया है कि अगर कोर्ट उनके पक्ष में निर्णय देता है तो अमेरिका “दुनिया का सबसे अमीर और सुरक्षित राष्ट्र” बन जाएगा, लेकिन यदि फैसला उनके खिलाफ गया तो “अमेरिका तीसरी दुनिया जैसा देश बन सकता है.”
कौन हैं नील कत्याल?
54 वर्षीय नील कत्याल का जन्म शिकागो में भारतीय मूल के प्रवासी परिवार में हुआ. उनकी मां डॉक्टर और पिता इंजीनियर थे. उन्होंने येल लॉ स्कूल से कानून की पढ़ाई की, जहाँ उन्हें प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी विशेषज्ञ अखिल अमर का मार्गदर्शन मिला. उनकी बहन सोनिया कत्याल कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले में लॉ प्रोफेसर हैं.
नील कत्याल अब तक अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में 50 से अधिक मामलों में बहस कर चुके हैं, जिनमें साल 2000 का ऐतिहासिक अल गोर बनाम बुश केस भी शामिल है. वे ट्रंप प्रशासन की नीतियों के खिलाफ भी कई बार कानूनी मोर्चा संभाल चुके हैं — खासकर मुस्लिम देशों पर लगे यात्रा प्रतिबंध और तेज डिपोर्टेशन नीति के खिलाफ. इस कारण अमेरिकी मीडिया उन्हें “Trump tormentor” यानी ट्रंप के कानूनी चुनौतीकर्ता के रूप में भी संबोधित करता है.
एक और भारतीय वकील भी केस में शामिल
इस महत्वपूर्ण मामले में एक और भारतीय-अमेरिकी वकील प्रतीक शाह भी सुप्रीम कोर्ट में दलीलें रख रहे हैं. वे Learning Resources और hand2mind जैसी कंपनियों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जो राष्ट्रपति के अधिकारों को सीमित करने की मांग कर रही हैं. दिलचस्प बात यह है कि कोर्ट में यह केस बहस के लिए नील कत्याल को सिक्का उछालकर सौंपा गया.
दुनिया की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर
सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई के लिए सामान्य 60 मिनट के बजाय 80 मिनट का समय दे रहा है. अदालत में भारी भीड़ रहने की संभावना है, क्योंकि इस फैसले का असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था, व्यापार नीतियों और राष्ट्रपति की शक्तियों पर सीधा पड़ेगा. अब दुनिया की नजर इस बात पर टिकी है कि क्या कोर्ट राष्ट्रपति की आर्थिक शक्तियों को सीमित करेगा या ट्रंप के दावों को नई मजबूती मिलेगी.