Cheap Russian oil: भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिए रूस से सस्ता कच्चा तेल आयात कर रहा है, जिससे देश को अरबों डॉलर की बचत हो रही है. हालाँकि, अमेरिका और नाटो ने इस आयात पर चिंता व्यक्त की है और भारत, चीन और ब्राज़ील पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की धमकी दी है.
उनका मानना है कि रूस से तेल खरीदकर ये देश अप्रत्यक्ष रूप से यूक्रेन युद्ध को आर्थिक मदद दे रहे हैं. लेकिन भारत के लिए यह सस्ता तेल न केवल आर्थिक रूप से फायदेमंद है, बल्कि रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. आइए इस मुद्दे को विस्तार से समझते हैं.
भारत को कितना फायदा?
2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने भारत, चीन और तुर्की जैसे देशों को रियायती दरों पर कच्चा तेल बेचना शुरू किया. इसका परिणाम यह हुआ कि भारत ने 2022 से 2025 के बीच रूसी तेल के आयात से 11 से 25 अरब डॉलर की बचत की.
रूसी तेल की कीमत वैश्विक बाजार मूल्य (ब्रेंट क्रूड) से प्रति बैरल 4-5 डॉलर कम रही, जो औसतन 65-75 डॉलर प्रति बैरल थी, जबकि ब्रेंट क्रूड की कीमत 80-85 डॉलर प्रति बैरल रही.
सस्ते तेल का आर्थिक प्रभाव
रूस से कच्चा तेल 11 से 16% सस्ता होने के कारण भारत का तेल आयात बिल कम रहा, जिससे चालू खाते के घाटे को नियंत्रित करने में मदद मिली. उदाहरण के लिए, यदि भारत 20 लाख बैरल प्रतिदिन तेल आयात करता है, तो प्रति बैरल 4 डॉलर की बचत सालाना करीब 2.9 अरब डॉलर की अतिरिक्त बचत बनती है. यह राशि भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करती है और ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम है.
सऊदी अरब और इराक जैसे पारंपरिक आपूर्तिकर्ता ब्रेंट क्रूड की कीमतों के आसपास या उससे थोड़ा कम कीमत पर तेल बेचते हैं, जो रूसी तेल से 10-15% महंगा पड़ता है. अगर भारत मध्य पूर्व से समान मात्रा में तेल खरीदता है, तो उसे सालाना अरबों डॉलर का अतिरिक्त खर्च वहन करना पड़ सकता है.
मध्य पूर्व से तेल आयात की चुनौतियां
मध्य पूर्व से तेल आयात भारत के लिए हमेशा से रणनीतिक और लॉजिस्टिक चुनौतियों का कारण रहा है. पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा है कि मध्य पूर्व से तेल की आपूर्ति संभव है, लेकिन यह महंगा होगा और लॉजिस्टिक्स की समस्याएं बढ़ सकती हैं.
हाल ही में ईरान-इजरायल तनाव के दौरान ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी दी थी, जो भारत की तेल आपूर्ति के लिए खतरा बन सकता है. इसके विपरीत, रूस भारत को ब्लैक सी और बाल्टिक मार्गों के जरिए तेजी से और कम लागत पर तेल की आपूर्ति करता है.
अमेरिका और नाटो की धमकी
अमेरिका और नाटो का मानना है कि भारत और चीन द्वारा रूस से तेल खरीदने से रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए वित्तीय सहायता मिल रही है. अमेरिका चाहता है कि भारत और चीन रूसी तेल का आयात बंद करें, ताकि मॉस्को युद्ध का खर्च न उठा सके. हालांकि, भारत के लिए यह कदम आर्थिक रूप से नुकसानदायक होगा. रूसी तेल के विकल्प के रूप में मध्य पूर्व से आयात बढ़ाने से भारत को न केवल अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी, बल्कि आपूर्ति की अनिश्चितता का सामना भी करना पड़ सकता है.
भारत की रणनीति
भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि वह अपनी ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्राथमिकता देगा. सस्ता रूसी तेल न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है, बल्कि वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों को स्थिर रखने में भी मदद करता है. भारत ने रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को मजबूत करते हुए यह सुनिश्चित किया है कि उसकी ऊर्जा आपूर्ति निर्बाध रहे.