बलूच लिबरेशन आर्मी का अमेरिका को करारा जवाब, 'हम आतंकी नहीं, आजादी की फौज'

बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने अमेरिका के उस फैसले का कड़ा विरोध किया है, जिसमें बीएलए की मजीद ब्रिगेड को विदेशी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल किया गया. बीएलए ने इसे औपनिवेशिक मानसिकता का समर्थन और बलूचिस्तान की जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ने वाला कदम करार दिया.

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Baloch Liberation Army: बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने अमेरिका के उस फैसले का कड़ा विरोध किया है, जिसमें बीएलए की मजीद ब्रिगेड को विदेशी आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल किया गया. बीएलए ने इसे औपनिवेशिक मानसिकता का समर्थन और बलूचिस्तान की जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ने वाला कदम करार दिया.

बीएलए के प्रवक्ता जयंद बलूच ने स्पष्ट किया कि उनकी संगठन अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए संघर्षरत है और उसे किसी बाहरी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं. यह लेख बीएलए के बयान, उनके संघर्ष की पृष्ठभूमि और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनकी स्थिति को विस्तार से प्रस्तुत करता है.

हमारी लड़ाई आजादी के लिए

बीएलए ने अपने बयान में कहा कि मजीद ब्रिगेड उनकी विशेष सैन्य इकाई है, जो बलूचिस्तान की स्वतंत्रता के लिए समर्पित है. जयंद बलूच ने कहा, “हमारी लड़ाई किसी बाहरी शक्ति या नागरिकों के खिलाफ नहीं, बल्कि उन ताकतों के खिलाफ है, जिन्होंने हमारी जमीन पर कब्जा किया.”

उन्होंने 1948 में पाकिस्तान द्वारा बलूचिस्तान पर हथियारों के बल पर कब्जे को इस संघर्ष का मूल कारण बताया. बीएलए का कहना है कि यह संगठन बलूच राष्ट्रीय गौरव और ऐतिहासिक प्रतिरोध का प्रतीक है, जो केवल अपनी मातृभूमि को विदेशी कब्जे से मुक्त कराने के लिए सक्रिय है.

जिनेवा कन्वेंशन का पालन

बीएलए ने अपने बयान में अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई. संगठन ने दावा किया कि वह जिनेवा कन्वेंशन के सामान्य अनुच्छेद 3 के तहत निर्धारित गैर-अंतरराष्ट्रीय सशस्त्र संघर्ष के सभी मानकों का पालन करता है.

इन मानकों में युद्ध के नियम, लड़ाकों के अधिकार और नागरिकों की सुरक्षा शामिल है. जयंद बलूच ने कहा, “हमारी लड़ाई नैतिक और कानूनी सिद्धांतों पर आधारित है. विश्व में कई ऐसे आंदोलन हैं, जिन्हें इन कानूनों के तहत मान्यता प्राप्त है. बीएलए भी उसी श्रेणी में आता है.”

पाकिस्तान के खिलाफ बीएलए का संघर्ष

बीएलए ने अपने बयान में पाकिस्तान पर गंभीर आरोप लगाए. संगठन का कहना है कि पाकिस्तान ने 1948 में बलूचिस्तान पर जबरन कब्जा किया और तब से बलूच जनता के संसाधनों, पहचान और संस्कृति का शोषण कर रहा है.

बीएलए ने स्पष्ट किया कि उनकी लड़ाई पाकिस्तानी सेना, फ्रंटियर कोर, खुफिया तंत्र और उनके समर्थक समूहों के खिलाफ है. “हमारी बंदूकें केवल उन ताकतों के खिलाफ उठती हैं, जिन्होंने हमारी जमीन छीनी. हम पाकिस्तानी नागरिकों या किसी वैश्विक शक्ति के खिलाफ नहीं हैं,” जयंद बलूच ने जोर देकर कहा.

राजनीतिक संतुलन या अन्याय?

बीएलए ने अमेरिका के फैसले को राजनीतिक संतुलन का हिस्सा बताते हुए इसे नैतिकता और न्याय के खिलाफ करार दिया. “पिछले 75 वर्षों से बलूच जनता अपनी जमीन पर स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रही है. इसे आतंकवाद का नाम देना अंतरराष्ट्रीय न्याय का मखौल है,” बीएलए ने अपने बयान में कहा. संगठन ने यह भी आरोप लगाया कि अमेरिका का यह कदम पाकिस्तान के दुष्प्रचार को वैधता प्रदान करता है, जो वर्षों से बीएलए को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है.

बलूचिस्तान का खनिज भंडार और वैश्विक हित

बीएलए ने अपने बयान में बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर वैश्विक पूंजीवादी हितों की भूमिका पर भी प्रकाश डाला. संगठन का दावा है कि बलूचिस्तान के बेशकीमती खनिज भंडार विदेशी कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए हैं.

पाकिस्तान इन संसाधनों को विदेशी कंपनियों को सौंपकर बलूचिस्तान को उपनिवेश बनाने की योजना बना रहा है. बीएलए ने विश्व समुदाय को बलूचिस्तान आने का न्योता दिया, ताकि वे स्वयं देख सकें कि इस क्षेत्र में क्या हो रहा है. “पाकिस्तान ने हर उस अंतरराष्ट्रीय सिद्धांत का उल्लंघन किया है, जिस पर सभ्य राष्ट्रों की साझेदारी आधारित है,” बीएलए ने कहा.

बीएलए का संकल्प

बीएलए ने अपने बयान में दोहराया कि उनकी लड़ाई तब तक जारी रहेगी, जब तक बलूचिस्तान से आखिरी विदेशी सैनिक नहीं हट जाता. संगठन ने बलूच जनता को एकजुट होने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का आह्वान किया. “जब किसी राष्ट्र से उसकी जमीन, पहचान और संसाधन छीन लिए जाते हैं, तो हर व्यक्ति फिदाई बन जाता है.

आज बलूचिस्तान का हर जागरूक बलूच एक फिदाई है,” जयंद बलूच ने कहा. बीएलए ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अपनी लड़ाई को अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानूनों के दायरे में रखेगा और नागरिकों को निशाना बनाने की नीति का हिस्सा नहीं है.