Student educated from Gurukul becomes IIT space scientist: केरल के कन्नूर जिले के एक छोटे से गाँव में जन्मे गोविंद कृष्णन एम की कहानी उन लोगों के लिए प्रेरणा है जो यह मानते हैं कि पारंपरिक शिक्षा आधुनिक उपलब्धियों में बाधक है.
गोविंद ने गुरुकुल की वैदिक शिक्षा को आधुनिक तकनीकी ज्ञान के साथ जोड़कर यह साबित किया कि दृढ़ संकल्प और अनुशासन के साथ कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है. उनकी यह यात्रा न केवल व्यक्तिगत सफलता की कहानी है, बल्कि भारतीय संस्कृति और विज्ञान के बीच सामंजस्य का प्रतीक भी है.
गुरुकुल से शुरू हुआ सफर
गोविंद के पिता हरीश कुमार, जो भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं, ने अपने बेटे को वैदिक शिक्षा देने का फैसला किया. गोविंद ने चौथी कक्षा में उपनयन संस्कार करवाया और उसे त्रिशूर के ब्रह्मस्वामी माधव गुरुकुल में भर्ती कराया गया.
यहाँ उन्होंने यजुर्वेद का गहन अध्ययन किया. सुबह 5 बजे से शुरू होने वाली कठोर दिनचर्या में किताबों के बिना मंत्रों और अनुष्ठानों का मौखिक अध्ययन शामिल था. इस अनुशासित वातावरण ने गोविंद को मानसिक शक्ति और आत्मविश्वास दिया.
IIT से ISRO तक की उड़ान
गुरुकुल शिक्षा के साथ गोविंद ने आधुनिक शिक्षा को भी अपनाया. उन्होंने 2021 में जेईई मेन और एडवांस परीक्षा पास की और भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी संस्थान (IIST) से इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार में बीटेक पूरा किया.
इसके बाद आईसीआरबी चयन प्रक्रिया के जरिए उनका चयन इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में जूनियर अंतरिक्ष वैज्ञानिक के रूप में हुआ.
गोविंद कहते हैं कि गुरुकुल ने मुझे अनुशासन दिया और विज्ञान ने दिशा. दोनों का मेल मेरी सबसे बड़ी ताकत है. गोविंद की कहानी बताती है कि परंपरा और आधुनिकता का संतुलन असाधारण सफलता का आधार बन सकता है. उनका सफर उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो अपनी जड़ों से जुड़ते हुए आसमान छूना चाहते हैं.