कांस्टीट्यूशन क्लब चुनाव में दिखी विपक्ष की रणनीति, जानिए बिहार विधानसभा पर कैसे पड़ेगा असर

दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के हालिया चुनाव ने न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए भी नए सियासी समीकरणों को जन्म दिया है.

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Constitution Club Elections: दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के हालिया चुनाव ने न केवल राजनीतिक गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए भी नए सियासी समीकरणों को जन्म दिया है. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद राजीव प्रताप रूडी ने अपने ही दल के नेता संजीव बालियान को 102 वोटों से हराकर सचिव (प्रशासन) का पद हासिल किया.

26 राउंड की मतगणना और पोस्टल बैलट की गिनती के बाद रूडी को 392 वोट मिले, जबकि बालियान को 290 वोटों पर संतोष करना पड़ा. यह सामान्य-सा प्रतीत होने वाला चुनाव BJP के दो दिग्गजों के बीच टकराव के कारण हाई-प्रोफाइल बन गया. इस लेख में हम इस चुनाव के बिहार विधानसभा पर संभावित प्रभाव, विपक्ष की रणनीति और राजपूत अस्मिता के उभार पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

BJP vs BJP की जंग

कांस्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया, जो मौजूदा और पूर्व सांसदों के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है, में सचिव (प्रशासन) के पद के लिए हुए इस चुनाव ने BJP के आंतरिक राजनीतिक समीकरणों को उजागर कर दिया. राजीव प्रताप रूडी, जो पिछले 25 वर्षों से इस पद पर काबिज थे, को इस बार संजीव बालियान से कड़ी चुनौती मिली. बालियान, जो मुजफ्फरनगर से BJP के पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं, उन्होंने इस चुनाव को एक रोचक मुकाबले में बदल दिया.

BJP सांसद निशिकांत दुबे और आंध्र प्रदेश के सांसद सीएम रमेश ने बालियान का खुलकर समर्थन किया. चुनाव से पहले यह संदेश फैलाने की कोशिश की गई कि बालियान को BJP के शीर्ष नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है, जबकि रूडी को पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का साथ नहीं मिला. इस धारणा को तब और बल मिला जब गृहमंत्री अमित शाह, BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा और कई केंद्रीय मंत्री वोट डालने कांस्टीट्यूशन क्लब पहुंचे.

रूडी को समर्थन का मास्टरस्ट्रोकइस

चुनाव में विपक्षी दलों, विशेष रूप से इंडिया गठबंधन, ने रणनीतिक रूप से रूडी का समर्थन किया. जैसे ही विपक्ष को पता चला कि रूडी को BJP के शीर्ष नेतृत्व का समर्थन नहीं है, उन्होंने इस अवसर को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव सहित कई विपक्षी सांसद वोट डालने पहुंचे.

विपक्षी दलों की रणनीति साफ थी वे इस चुनाव को BJP के आंतरिक मतभेदों को उजागर करने और बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के अवसर के रूप में देख रहे थे. रूडी की जीत को विपक्ष ने अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया, इसे BJP के केंद्रीय नेतृत्व की हार से जोड़ा. इंडिया गठबंधन ने इस जीत को बिहार बनाम गुजरात के नजरिए से पेश करने की कोशिश की, जिससे बिहार की क्षेत्रीय अस्मिता को बल मिला.

बिहार के सांसदों की लामबंदी

इस चुनाव में बिहार के सांसदों ने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर रूडी का समर्थन किया. बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी के पिता शकुनि चौधरी, जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण कुमार और रामकृपाल यादव जैसे नेताओं ने विशेष रूप से दिल्ली पहुंचकर रूडी के पक्ष में वोट डाला. इस एकजुटता का कारण बिहार विधानसभा चुनाव में राजपूत मतदाताओं का प्रभाव और रूडी का "जय सांगा" अभियान था.

रूडी ने हाल ही में "जय सांगा" नारे के साथ राजपूत समुदाय को एकजुट करने की पहल शुरू की है. यह अभियान सोशल मीडिया और बिहार में आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से जोर पकड़ रहा है. इस नारे ने न केवल बिहार, बल्कि अन्य राज्यों के राजपूत सांसदों को भी रूडी के पक्ष में आकर्षित किया. बिहार में राजपूत मतदाताओं का प्रभावशाली आधार और जाट समुदाय की अनुपस्थिति ने रूडी के पक्ष में माहौल बनाया.

BJP के असंतुष्ट नेताओं का रूडी को समर्थन

चुनाव में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि BJP के वे नेता, जो केंद्रीय नेतृत्व से असंतुष्ट थे, ने रूडी का खुलकर समर्थन किया. जिन नेताओं के लोकसभा टिकट कटे या जिन्हें पार्टी में हाशिए पर रखा गया, उन्होंने रूडी की जीत को अपनी जीत के रूप में देखा.

कांस्टीट्यूशन क्लब के 1,250 मतदाताओं में से करीब 300 मौजूदा सांसद हैं, जिनमें 200 के आसपास विपक्षी दलों के हैं. इस कमी को पूरा करने के लिए BJP ने पूर्व सांसदों और राज्यपालों को दिल्ली बुलाया. हालांकि, कई पूर्व सांसद रूडी के कांस्टीट्यूशन क्लब में किए गए कार्यों से प्रभावित थे और उन्होंने व्यक्तिगत आधार पर उन्हें वोट दिया.

बिहार विधानसभा चुनाव पर प्रभाव

कांस्टीट्यूशन क्लब का यह चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देता है. विपक्ष, खासकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस, इस जीत को बिहार की क्षेत्रीय अस्मिता से जोड़कर प्रचारित कर रहे हैं. वे इसे "बिहार बनाम गुजरात" के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे बिहार के मतदाताओं में क्षेत्रीय गौरव की भावना जागृत हो.

रूडी की जीत और उनके "जय सांगा" अभियान ने राजपूत मतदाताओं के बीच उत्साह पैदा किया है, जो बिहार में एक प्रभावशाली वोट बैंक है. यह BJP के लिए एक चुनौती बन सकता है, क्योंकि रूडी को समर्थन देने वाले असंतुष्ट BJP नेताओं और विपक्षी दलों की एकजुटता बिहार में सियासी समीकरण बदल सकती है.