आगामी लोकसभा चुनाव से पहले नोट फॉर वोट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. 4 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की बेंच ने 1998 के फैसले को पलटते हुए कहा कि सांसदों और विधायकों को छूट नहीं दी जा सकती. कोर्ट ने कहा कि यह विशेषाधिकार के अंतर्गत नहीं आता है. सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सोमवार को फैसला सुनाया कि कोई भी सांसद या विधायक संसद या विधान सभा में वोट या भाषण के संबंध में रिश्वतखोरी के आरोप में अभियोजन से छूट का दावा नहीं कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से पीवी नरसिम्हा राव मामले में 1998 के फैसले को खारिज कर दिया.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सुनवाई के दौरान कहा, "हम पीवी नरसिम्हा मामले में फैसले से असहमत हैं, जो एक विधायक को सदन में भाषण देने या मतदान करने के लिए कथित रिश्वतखोरी से छूट देता है, जिसके दूरगामी प्रभाव होते हैं." सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायकों द्वारा भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी भारतीय संसदीय लोकतंत्र की कार्यप्रणाली को नष्ट कर देती है। सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि धारा 105 या 194 का हवाला देकर रिश्वतखोरी को छूट नहीं दी गई है.
सीजेआई ने कहा, ''रिश्वतखोरी में शामिल सदस्य आपराधिक कृत्य में शामिल होता है जिसके लिए विधानसभा में वोट देना या भाषण देना जरूरी नहीं है.'' सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीवी नरसिम्हा फैसले की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के विपरीत है. अदालत ने माना कि पूछे गए प्रश्न की दी गई व्याख्या और पीवी नरसिम्हा राव में बहुमत के फैसले से विपरीत परिणाम मिले, जहां एक विधायक को रिश्वत लेने और सहमत दिशा में मतदान करने की छूट दी गई थी।