US Army Beard Ban: अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) की नई ग्रूमिंग नीति ने धार्मिक स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इस नीति के तहत सेना में दाढ़ी रखने की छूट को लगभग समाप्त कर दिया गया है, जिससे सिख, मुस्लिम और यहूदी समुदाय के सैनिकों में चिंता की लहर दौड़ गई है. रक्षा सचिव पीट हेगसेथ ने हाल ही में एक मेमो जारी कर कहा कि सेना में 'सुपरफिशियल व्यक्तिगत अभिव्यक्ति' जैसे दाढ़ी की कोई जगह नहीं है. उनका कहना था कि हमारे पास नॉर्डिक पगानों की सेना नहीं है. इसके बाद पेंटागन ने सभी सैन्य शाखाओं को आदेश दिया कि 60 दिनों के भीतर धार्मिक छूट सहित अधिकांश दाढ़ी छूट को समाप्त किया जाए.
यह नीति 2010 से पहले की कठोर व्यवस्था की ओर लौटती दिख रही है, जब दाढ़ी रखने की छूट सामान्यतः अनुमति नहीं थी. केवल विशेष बलों के लिए, स्थानीय आबादी में घुलमिलने के उद्देश्य से दी जाने वाली अस्थायी छूट को बरकरार रखा जाएगा. 2017 में सेना ने सिख सैनिकों के लिए दाढ़ी और पगड़ी की स्थायी छूट को औपचारिक रूप दिया था. इसके बाद मुस्लिम, यहूदी और नॉर्स पगान सैनिकों को भी धार्मिक आधार पर छूट दी गई थी. जुलाई 2025 में सेना ने चेहरे के बालों की नीति अपडेट की थी, लेकिन धार्मिक छूट को सुरक्षित रखा गया था. हालांकि, नई नीति इन प्रगतिशील सुधारों को पलटते हुए 1981 के सुप्रीम कोर्ट के गोल्डमैन बनाम वेनबर्गर फैसले से प्रेरित सख्त नियमों की ओर लौट रही है.
सिख कोअलिशन, जो अमेरिकी सैन्य में सिख अधिकारों के लिए प्रमुख संगठन है, उसने इस कदम को 'विश्वासघात' बताया. संगठन का कहना है कि दाढ़ी और पगड़ी सिख पहचान का अभिन्न हिस्सा है और इस नीति से वर्षों की समावेशिता की लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी. सिख सैनिकों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि उनके 'केश उनकी पहचान' हैं और यह आदेश उनके विश्वास पर चोट है. इतिहास बताता है कि 1917 में भगत सिंह थिंड पहले सिख थे जिन्हें अमेरिकी सेना में पगड़ी पहनकर सेवा का अवसर मिला था. इसके बाद कई कानूनी फैसलों ने धार्मिक स्वतंत्रता को मजबूत किया.
यह नीति केवल सिखों तक सीमित नहीं है. मुस्लिम सैनिकों के लिए दाढ़ी धार्मिक दायित्व है, जबकि यहूदी सैनिकों के लिए पायोट और दाढ़ी उनकी आस्था का हिस्सा हैं. काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस (सीएआईआर) ने पेंटागन से स्पष्टता मांगी है कि क्या धार्मिक स्वतंत्रता संरक्षित रहेगी. सीएआईआर ने कहा कि अमेरिकी संविधान का प्रथम संशोधन ऐसे अधिकारों की गारंटी देता है.
नई नीति का असर नस्लीय स्तर पर भी दिख सकता है. काले सैनिकों के लिए चिकित्सकीय छूट, जो रेजर बंप्स जैसी समस्याओं से बचने हेतु दी जाती थी, अब स्थायी नहीं रहेगी. नॉर्स पगान सैनिकों ने भी इसे अपनी मान्यताओं पर हमला बताया है. इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के मुताबिक यह नीति नस्ल और धर्म आधारित बहिष्कार को बढ़ावा देती है.