मोदी, पुतिन और शी जिनपिंग की नजदीकी पर अमेरिका की नजर, भारत-अमेरिका रिश्तों को बताया 21वीं सदी की पहचान

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की हालिया बैठक, जो चीन में आयोजित हुई, ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक मंच पर नजर आए.

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SCO Meeting: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की हालिया बैठक, जो चीन में आयोजित हुई, ने वैश्विक कूटनीति में हलचल मचा दी है. इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग एक मंच पर नजर आए.

इस त्रिकोणीय मुलाकात ने जहां वैश्विक समीकरणों को नई दिशा दी, वहीं अमेरिका ने इसे लेकर मिश्रित संदेश दिए हैं. एक तरफ अमेरिका भारत के साथ अपने रिश्तों को 21वीं सदी की परिभाषा बता रहा है, तो दूसरी तरफ ट्रंप प्रशासन की ओर से भारत पर तीखे बयान सामने आ रहे हैं.

भारत-अमेरिका साझेदारी

अमेरिकी विदेश विभाग ने भारत के साथ अपने संबंधों को अभूतपूर्व बताया है. विभाग के अनुसार, यह रिश्ता केवल रणनीतिक साझेदारी तक सीमित नहीं है, बल्कि दोनों देशों के लोगों के बीच गहरी दोस्ती पर टिका है. यह बयान इस बात का प्रतीक है कि दोनों देश वैश्विक मंच पर एक-दूसरे के पूरक बने रहना चाहते हैं.

भारत पर टैरिफ और आरोप

हालांकि, अमेरिका की आधिकारिक बयानबाजी के उलट, डोनाल्ड ट्रंप के करीबी सलाहकारों की ओर से भारत के खिलाफ तीखी आलोचना हो रही है. हाल ही में भारत पर 50% टैरिफ थोपा गया, जिसका कारण रूस से सस्ते कच्चे तेल की खरीद को बताया गया.

ट्रंप के सलाहकार पीटर नवारो ने 28 अगस्त को दावा किया कि रूस-यूक्रेन युद्ध को "मोदी का युद्ध" कहा जाना चाहिए, क्योंकि भारत सस्ते रूसी तेल को रिफाइन कर ऊंचे दामों पर बेच रहा है, जिससे रूस को आर्थिक बल मिल रहा है.

क्रेमलिन की मनी लॉन्ड्रिंग मशीन का आरोप

नवारो ने 29 अगस्त को अपनी टिप्पणी को और तल्ख करते हुए भारत को "क्रेमलिन की मनी लॉन्ड्रिंग मशीन" तक करार दे दिया. उनका कहना है कि भारतीय रिफाइनरियां मुनाफे के लिए आम लोगों के हितों की अनदेखी कर रही हैं. अमेरिका का मानना है कि भारत की यह नीति रूस की युद्ध मशीन को वित्तीय सहायता दे रही है, और टैरिफ इसी का जवाब है. 

भारत की कूटनीतिक चाल

एससीओ बैठक में भारत की सक्रियता और रूस-चीन के साथ बढ़ती नजदीकी ने वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को और मजबूत किया है. हालांकि, अमेरिका के दोहरे रवैये ने भारत के सामने कूटनीतिक चुनौतियां भी खड़ी की हैं. एक तरफ दोस्ती का दावा, दूसरी तरफ आर्थिक और कूटनीतिक दबाव यह स्थिति भारत की विदेश नीति की मजबूती को परख रही है.