चंडीगढ़: पंजाब की राजनीति और धार्मिक इतिहास में सोमवार का दिन स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गया, जब राज्य विधानसभा ने अपने इतिहास में पहली बार राजधानी चंडीगढ़ से बाहर पवित्र नगरी श्री आनंदपुर साहिब में विशेष सत्र आयोजित किया. यह अभूतपूर्व निर्णय हिन्द दी चादर श्री गुरु तेग बहादुर जी की 350वीं शहादत को समर्पित रहा, जिसने पूरे प्रदेश में आध्यात्मिक उत्साह और सांस्कृतिक गौरव का नया वातावरण बना दिया.
आनंदपुर साहिब वह पवित्र स्थल है जहां दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. सिख इतिहास की अनेक निर्णायक घटनाओं का साक्षी रहे इस स्थल को विधानसभा सत्र की मेजबानी देकर सरकार ने न केवल अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं को समृद्ध किया, बल्कि पंजाब की आध्यात्मिक धरोहर के प्रति गहरा सम्मान भी प्रकट किया.
दिशा में ऐतिहासिक कदम
विशेष सत्र के दौरान मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया, जिसमें श्री आनंदपुर साहिब, तलवंडी साबो और अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर को “पवित्र नगर” का दर्जा देने की मांग की गई. विधानसभा ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव को पारित कर दिया, जिसे राज्य की धार्मिक-सांस्कृतिक पहचान को सुरक्षित रखने की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है.
प्रदेश भर में इस अवसर पर विविध कार्यक्रम आयोजित किए गए. भव्य नगर कीर्तन निकाले गए जिनमें हजारों श्रद्धालुओं ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया. धार्मिक विमर्श और सेमिनारों में विद्वानों ने गुरु तेग बहादुर जी की मानवीय दृष्टि, उनके बलिदान और धर्म एवं मानवाधिकारों की रक्षा के प्रति उनके योगदान पर विस्तृत चर्चा की. इसी क्रम में रक्तदान शिविर, वृक्षारोपण और सामाजिक जागरूकता कार्यक्रमों का भी आयोजन हुआ, जिनसे पूरे राज्य में सेवा और सद्भावना का संदेश फैला.
पंजाब के इतिहास में एक यादगार अध्याय
गुरु तेग बहादुर जी ने कश्मीरी पंडितों की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना बलिदान दिया था, जिसे मानव इतिहास में अद्वितीय मिसाल माना जाता है. उनका संदेश आज भी मानवता, भाईचारे और न्याय की राह दिखाता है. विशेष सत्र ने नई पीढ़ी को उनके जीवन दर्शन से जोड़ने का अवसर प्रदान किया.
पंजाब सरकार की यह पहल यह दर्शाती है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं भी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहरों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं. श्री आनंदपुर साहिब में आयोजित यह ऐतिहासिक सत्र न केवल राज्य की पहचान को नई मजबूती देता है, बल्कि समाज में एकता, सद्भाव और आध्यात्मिक चेतना को भी प्रोत्साहित करता है. यह आयोजन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा और पंजाब के इतिहास में एक यादगार अध्याय के रूप में दर्ज रहेगा.