महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू हो गया है. लंबे समय से अलग-अलग रास्तों पर चल रहे चचेरे भाई उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने आगामी नगर निकाय चुनावों के लिए हाथ मिला लिया है. शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) ने संयुक्त रूप से गठबंधन की घोषणा की है, जिससे मराठी अस्मिता और स्थानीय मुद्दों पर एक मजबूत मोर्चा खड़ा हो गया है. यह गठबंधन विशेष रूप से बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, जहां दोनों पार्टियां मिलकर मैदान में उतरेंगी.
मुंबई में बुधवार को एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने इस गठबंधन का ऐलान किया. इससे पहले दोनों नेताओं ने अपने परिवारों के साथ शिवाजी पार्क में बालासाहेब ठाकरे को श्रद्धांजलि अर्पित की. राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र लंबे समय से इस दिन का इंतजार कर रहा था. आज मैं घोषणा करता हूं कि शिवसेना (यूबीटी) और एमएनएस हमेशा के लिए एकजुट हो गए हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि मुंबई का महापौर एक मराठी व्यक्ति होगा, जो या तो उनकी पार्टी से या उद्धव की पार्टी से होगा.
उद्धव ठाकरे ने भी इस पल को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि हम ठाकरे भाई के रूप में एक साथ आए हैं और हमेशा साथ रहेंगे. मराठी मानूस को सशक्त बनाना हमारी प्राथमिकता है. उन्होंने मराठी लोगों की एकता पर बल देते हुए कहा कि मराठी लोग दूसरों को परेशान नहीं करते, लेकिन अगर कोई उनके रास्ते में आएगा तो उसे बख्शा नहीं जाएगा.
महाराष्ट्र में २९ नगर निगमों के चुनाव 15 जनवरी को होने हैं, जिनमें बीएमसी सबसे महत्वपूर्ण है. बीएमसी की 227 सीटों में शिवसेना (यूबीटी) को 145-150 सीटें और एमएनएस को 65-70 सीटें मिलने की संभावना है. कुछ सीटें एनसीपी (शरद पवार गुट) के साथ साझा की जा सकती हैं. मुंबई के अलावा ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, नासिक, पुणे और अन्य निकायों में भी यह गठबंधन प्रभावी होगा. हालांकि सीट बंटवारे को लेकर पहले कुछ मतभेद थे, जैसे दादर, माहिम, बोरीवली और विक्रोली जैसे इलाकों में, लेकिन अंतिम चर्चा के बाद सब सुलझ गया. उद्धव ठाकरे ने एनसीपी (एसपी) के साथ भी बातचीत की संभावना जताई है.
यह गठबंधन २० वर्षों की राजनीतिक दुश्मनी को समाप्त करता है. जनवरी २००६ में राज ठाकरे ने अविभाजित शिवसेना छोड़कर एमएनएस की स्थापना की थी. दोनों पार्टियां मराठी गौरव और स्थानीय मुद्दों पर एक ही जड़ों से जुड़ी हैं. इस साल जुलाई में वर्ली में हुई रैली में दोनों ने पहली बार मंच साझा किया था, जब राज्य सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने का फैसला वापस लिया. उस रैली ने एकता की नींव रखी. यह गठबंधन महायुति (बीजेपी-शिवसेना शिंदे-एनसीपी अजित) के लिए चुनौती पेश करेगा. मराठी वोटों का एकीकरण विपक्ष को मजबूती देगा. कांग्रेस ने इस गठबंधन से दूरी बनाई है, जिससे महा विकास अघाड़ी में दरार दिख रही है.