TASMAC शराब घोटाले मामले पर सुप्रीम कोर्ट का एक्शन, ईडी को लगाई फटकार

ईडी ने तमिलनाडु में एक हजार करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाले का दावा किया है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को फटकार लगाई है.

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Courtesy: Social Media

TASMAC Liquor Scam:  तस्माक (तमिलनाडु राज्य विपणन निगम) के खिलाफ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की जांच और छापेमारी पर अस्थायी रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांस एजेंसी को फटकार लगाई है. CJI  ने ईडी की कार्रवाई को असंगत और संभवतः असंवैधानिक बताया है. 

भारत के मुख्य न्यायाधीश ने इस मामले पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि ईडी एक राज्य निगम को निशाना बनाकर 'संघीय ढांचे का उल्लंघन' कर रहा है. मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय है. ईडी अपनी सीमाओं को पार कर रहा है. यह आदेश तमिलनाडु सरकार की याचिका पर आया, जिसमें उसने ईडी की छापेमारी को अवैध और राजनीति से प्रेरित बताया. 

ईडी का आरोप 

ईडी ने तमिलनाडु में एक हजार करोड़ रुपये के कथित शराब घोटाले का दावा किया है. उसका आरोप है कि डिस्टिलरी ने शराब की आपूर्ति के ऑर्डर पाने के लिए बेहिसाब नकदी दी. हालांकि, तमिलनाडु सरकार ने कहा कि उसने 2014-2021 के बीच अपने सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय के जरिए 41 एफआईआर दर्ज की हैं. तमिलनाडु सरकार और तस्माक ने तर्क दिया कि ईडी बिना ठोस सबूत या 'प्रिडिकेट अपराध' के आधार के जांच कर रहा है. राज्य ने आरोप लगाया कि ईडी ने तस्माक के कर्मचारियों, विशेषकर महिला कर्मचारियों, को परेशान किया. उनके फोन और निजी डिवाइस जब्त किए गए, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ. 

राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप

डीएमके के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार ने केंद्र की भाजपा सरकार पर ईडी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया. उसका कहना है कि यह कार्रवाई आगामी चुनावों को ध्यान में रखकर और राज्य की छवि खराब करने के लिए की गई. तमिलनाडु सरकार ने पहले मद्रास उच्च न्यायालय में ईडी की छापेमारी को चुनौती दी थी, लेकिन वहां याचिका खारिज हो गई. इसके बाद 20 मई को राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. पहले भी तमिलनाडु ने इस मामले को मद्रास उच्च न्यायालय से किसी अन्य उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी, लेकिन बाद में याचिका वापस ले ली.अभी के समय में सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला तमिलनाडु सरकार के लिए बड़ी राहत है. यह मामला केंद्र और राज्य के बीच अधिकारों की सीमा और संघीय ढांचे पर बहस को और तेज कर सकता है.