सुप्रीम कोर्ट का मंदिरों में वीआईपी एंट्री पर रोक लगाने से इनकार, जानें पूरा मामला

भारत में मंदिरों में वीआईपी एंट्री की परंपरा दशकों से चली आ रही है, जो समाज में हमेशा विवादों का कारण बनती रही है. हाल ही में इस पर एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से देशभर के मंदिरों में वीआईपी एंट्री पर रोक लगाने की मांग की गई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर किसी प्रकार का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया है.  

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Courtesy: social media

भारत में मंदिरों में वीआईपी एंट्री की परंपरा दशकों से चली आ रही है, जो समाज में हमेशा विवादों का कारण बनती रही है. हाल ही में इस पर एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से देशभर के मंदिरों में वीआईपी एंट्री पर रोक लगाने की मांग की गई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर किसी प्रकार का आदेश पारित करने से इनकार कर दिया है.  

क्या था मामला?

वीआईपी एंट्री, यानी कि विशेष व्यक्तियों के लिए मंदिरों में प्राथमिकता से प्रवेश की सुविधा, भारत के कई प्रमुख मंदिरों में एक सामान्य चलन है. यह प्रथा अक्सर विवादों में घिरती रही है, क्योंकि कई बार आम श्रद्धालुओं को इन वीआईपी व्यक्तियों के कारण घंटों लंबी कतारों में खड़ा रहना पड़ता है. इस पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें मांग की गई थी कि मंदिरों में वीआईपी एंट्री पर रोक लगाई जाए और सभी भक्तों को समान रूप से मंदिरों में प्रवेश दिया जाए.  

सुप्रीम कोर्ट का आदेश 

सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि वह इस मामले में कोई आदेश जारी नहीं करेगा. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि यह धार्मिक मामलों में दखल देने का समय नहीं है और सरकार को इस पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता दी जाएगी. अदालत ने यह भी कहा कि प्रत्येक मंदिर का प्रबंधन अपने तरीके से किया जाता है, और वह इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहती.  

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रियाएं

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद विभिन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों से प्रतिक्रिया मिल रही है. कुछ का मानना है कि वीआईपी एंट्री से आम भक्तों को असुविधा होती है और यह धार्मिक समानता के सिद्धांत के खिलाफ है. वहीं, कुछ लोग इस परंपरा के पक्ष में हैं और उनका कहना है कि यह मंदिरों के प्रबंधन की व्यवस्था का हिस्सा है.  

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में धार्मिक परंपराओं और प्रशासन के तरीके पर एक महत्वपूर्ण सवाल उठाता है. हालांकि कोर्ट ने इस मामले में किसी भी प्रकार की रोक लगाने से इनकार कर दिया है, लेकिन इस पर आगे चर्चा जारी रह सकती है. यह मुद्दा सामाजिक समानता और धार्मिक परंपराओं के बीच संतुलन बनाए रखने की चुनौती को दर्शाता है.