Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया के शीर्ष पदों पर कार्यरत व्यक्तियों को चेतावनी दी है कि वे कोई भी बयान, समाचार या राय प्रकाशित करने से पहले अत्यधिक सावधानी और जिम्मेदारी बरतें. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सर्वोपरि है, लेकिन यह अधिकार जिम्मेदारी के साथ इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
मीडिया की शक्ति और जिम्मेदारी
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन शामिल थे, ने यह टिप्पणी तब की जब उन्होंने अंग्रेजी दैनिक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के संपादकीय निदेशक और अन्य पत्रकारों के खिलाफ मानहानि के मामले को खारिज किया. इन पत्रकारों पर आरोप था कि उन्होंने बिड एंड हैमर - फाइन आर्ट ऑक्शनियर्स द्वारा नीलामी के लिए पेश की गई पेंटिंग्स की प्रामाणिकता पर कथित तौर पर मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित की थी.
कोर्ट ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अत्यधिक महत्वपूर्ण है. साथ ही, मीडिया में कार्यरत प्रमुख पदों पर बैठे व्यक्तियों को कोई भी समाचार, बयान या राय प्रकाशित करने से पहले अत्यधिक जिम्मेदारी बरतनी चाहिए."
मीडिया की रिपोर्टिंग में सटीकता
सुप्रीम कोर्ट ने अंग्रेजी लेखक बुल्वर लिटन के कथन को उद्धृत किया, “कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है.” कोर्ट ने यह भी कहा कि मीडिया की शक्ति इतनी अधिक है कि एक लेख या रिपोर्ट लाखों लोगों को प्रभावित कर सकता है और उनके विचारों को आकार दे सकता है. इससे संबंधित व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिसके परिणाम दूरगामी और स्थायी हो सकते हैं.
कोर्ट ने यह भी कहा कि इस प्रकार के मामलों में सटीक और निष्पक्ष रिपोर्टिंग की महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है, विशेषकर तब जब किसी व्यक्ति या संस्थान की ईमानदारी पर असर पड़ने की संभावना हो. मीडिया को इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए समाचारों का प्रकाशन करना चाहिए, जिससे जनहित और सद्भावना बनी रहे.
मुकदमेबाजी में देरी
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर की गई याचिका पर सुनवाई की. पत्रकारों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत आरोप लगाए गए थे. शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि पत्रकारों के प्रकाशित समाचारों के कारण उसकी कलाकृतियों को लेकर सार्वजनिक संदेह उत्पन्न हुआ और उन्हें फर्जी साबित करने की कोशिश की गई.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को समन जारी करने से पहले गवाहों की फिर से जांच करने के लिए वापस भेजने से इनकार कर दिया, क्योंकि यह मुकदमेबाजी को लंबा खींचने के अलावा कोई लाभ नहीं पहुंचाता. कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाहों के बिना यह साबित करना संभव नहीं हो सका कि मानहानिकारक सामग्री के कारण वास्तविक नुकसान हुआ था.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से स्पष्ट हो गया है कि मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बयान और समाचार प्रकाशित करने चाहिए, ताकि किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान न पहुंचे. इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उपयोग करते समय, यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मीडिया अपने कार्य में निष्पक्ष और सटीक रहे.