CJI गवई का बड़ा फैसला! पुराना आदेश वापस, सुप्रीम कोर्ट में तीखी बहस और 97 पेज की असहमति

सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को उस वक्त असामान्य स्थिति देखने को मिली, जब मुख्य न्यायाधीश डी.आर. गवई (CJI BR Gavai) की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने वनशक्ति मामले में दिया गया अपना पुराना आदेश वापस ले लिया.

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CJI BR Gavai: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को उस वक्त असामान्य स्थिति देखने को मिली, जब मुख्य न्यायाधीश डी.आर. गवई (CJI BR Gavai) की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने वनशक्ति मामले में दिया गया अपना पुराना आदेश वापस ले लिया. 16 मई 2025 को दिए गए उस आदेश में पोस्ट-फेक्टो पर्यावरण मंजूरी को अवैध ठहराते हुए कई निर्माणों को ढहाने का निर्देश दिया गया था. लेकिन नए फैसले में बेंच के दो जजों CJI गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन ने बहुमत से इसे रद्द कर दिया, जबकि तीसरे जज जस्टिस उज्जल भुइयां ने 97 पेज की तीखी असहमति दर्ज की.

रियोजनाओं पर मंडरा रहा संकट टला

बहुमत के फैसले में कहा गया कि मई का आदेश बरकरार रहने पर देशभर में लगभग 20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को ध्वस्तीकरण का सामना करना पड़ता. केंद्र सरकार ने कोर्ट को वे परियोजनाओं की सूची सौंपी, जो प्रभावित थीं—ओडिशा के एम्स में 962 बिस्तरों वाला अस्पताल, ग्रीनफील्ड एयरपोर्ट समेत कई राष्ट्रीय महत्व की इमारतें इसमें शामिल थीं. कोर्ट ने माना कि इनका अस्तित्व खतरे में पड़ने से न केवल सार्वजनिक धन की भारी हानि होती, बल्कि विकास कार्य भी ठप हो जाते.

जस्टिस भुइयां का कड़ा विरोध

बहुमत के फैसले से असहमत जस्टिस उज्जल भुइयां ने 97 पेज का विस्तृत असहमति आदेश लिखा. उन्होंने कहा कि 16 मई का निर्णय पर्यावरण न्यायशास्त्र के मूल सिद्धांतों पर आधारित था, खासकर प्रिकॉश्नरी प्रिंसिपल पर, जिसे कोर्ट अनदेखा नहीं कर सकती.

उन्होंने टिप्पणी की कि ‘पॉल्यूटर पे’ केवल क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है, लेकिन उसकी आड़ में पर्यावरण संरक्षण के मूल सिद्धांतों को कमजोर नहीं किया जा सकता. जस्टिस भुइयां ने नए निर्णय को “पर्यावरण सुरक्षा के लिए पीछे ले जाने वाला कदम” करार दिया और कहा कि यह बहुमत का सिर्फ एक innocent expression of opinion है, जो कानूनी सिद्धांतों का पर्याप्त सम्मान नहीं करता.

जस्टिस चंद्रन का अलग मत

बेंच के तीसरे सदस्य जस्टिस के विनोद चंद्रन ने भी अलग से अपना आदेश लिखते हुए कहा कि असहमति लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वस्थ परंपरा का हिस्सा है, लेकिन फैसले तथ्यों और कानून के संतुलित मूल्यांकन पर आधारित होने चाहिए. उन्होंने 16 मई के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि उसमें एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट की शक्तियों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया गया था. उनके अनुसार, समीक्षा याचिका स्वीकार करना ‘जरूरी, अनिवार्य और त्वरित’ था.

क्या है आगे का रास्ता?

फैसले के बाद देशभर की कई रुकी परियोजनाओं को राहत मिल गई है, जबकि पर्यावरण समूह इस फैसले पर सवाल उठा सकते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय ‘डेवलपमेंट बनाम एनवायरमेंट’ बहस को नए सिरे से खोल देगा और भविष्य में पोस्ट-फेक्टो पर्यावरण मंजूरियों पर व्यापक नीति की जरूरत पड़ेगी.