Rahul Gandhi targeted PM Modi: भारत की सियासत में एक बार फिर BJP-RSS की नीतियों पर सवाल उठ रहे हैं. कहा जाता है कि विदेशी दबाव के सामने ये आसानी से झुक जाते हैं. हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कथित फोन कॉल के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रवैये ने इस धारणा को बल दिया.
इसके विपरीत, 1971 में जब अमेरिका का सातवां बेड़ा भारत के खिलाफ तैनात था, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दृढ़ता दिखाते हुए कहा था, "मैं वही करूंगी, जो मुझे ठीक लगता है." यह अंतर BJP-RSS की कथित कमजोरी को उजागर करता है.
आर्थिक असमानता
देश की अर्थव्यवस्था में असमानता चरम पर है. धन का बड़ा हिस्सा कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों के हाथों में सिमट रहा है. अडानी और अंबानी जैसे नाम हर तरफ छाए हैं, मानो देश में अन्य उद्यमी मौजूद ही नहीं. अमेरिका में अडानी पर कानूनी जांच चल रही है, लेकिन भारत में उनकी गतिविधियों पर कोई सवाल नहीं उठता. इसका कारण उनकी सरकार से नजदीकी माना जाता है. यह नीति 90% आबादी को हाशिए पर धकेल रही है.
जातिगत जनगणना के दो मॉडल हैं।
— Congress (@INCIndia) June 3, 2025
• एक तेलंगाना का मॉडल
• दूसरा बिहार का मॉडल
बिहार में अफसरों ने जातिगत सर्वे के लिए बिना दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, जनरल कास्ट या अल्पसंख्यकों से पूछे ही सवाल तैयार कर दिए।
वहीं, तेलंगाना में हमने लाखों लोगों से सवाल पूछा। हमारे इस प्रॉसेस में… pic.twitter.com/OKX7vFBOQX
बेरोजगारी और विदेशी माल की बिक्री
अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपति कथित तौर पर चीन के सामान को भारत में बेचकर मुनाफा कमा रहे हैं. इससे चीन में रोजगार बढ़ रहा है, जबकि भारत के युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. यह देश की आर्थिक नीतियों की विफलता को दर्शाता है.
तेलंगाना vs बिहार मॉडल
जातिगत जनगणना के दो मॉडल चर्चा में हैं. बिहार में अधिकारियों ने बिना समुदायों से राय लिए सर्वे प्रश्न तैयार किए, जो अपूर्ण माना गया. वहीं, तेलंगाना ने 3.5 लाख लोगों की राय लेकर व्यापक सर्वे किया. इस सर्वे से पता चला कि कॉर्पोरेट सेक्टर के शीर्ष पदों पर दलित, आदिवासी या पिछड़े वर्ग का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है.
यह सामाजिक अन्याय को उजागर करता है. भारत की मौजूदा नीतियां आर्थिक और सामाजिक असमानता को बढ़ा रही हैं. जातिगत जनगणना और निष्पक्ष नीतियों के जरिए ही इस असंतुलन को दूर किया जा सकता है.