Iran nuclear deal: ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर दृढ़ रुख अपनाते हुए साफ कर दिया है कि वह अपने अधिकारों से कोई समझौता नहीं करेगा. तेहरान ने रूस और चीन के साथ मिलकर एक मजबूत कूटनीतिक रणनीति तैयार की है, जिसका मकसद अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव को नाकाम करना है. यह रणनीति मध्यपूर्व की भू-राजनीति को नया मोड़ दे सकती है.
रूस-चीन के साथ त्रिपक्षीय गठबंधन
सोमवार को तेहरान में ईरान, रूस और चीन के बीच उच्च स्तरीय बैठक हुई. इस बैठक का उद्देश्य शुक्रवार को E3 (ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी) के साथ होने वाली परमाणु वार्ता से पहले संयुक्त रणनीति बनाना था. ईरान ने इस बैठक में 'मांग आधारित कूटनीति' को अपनाने का फैसला किया, जिसके तहत वह पश्चिमी दबाव को खारिज करते हुए अपनी शर्तों पर बातचीत करेगा. यह रणनीति भारत की तेल खरीद नीति से प्रेरित है, जहां राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं.
E3 के साथ आगामी वार्ता
शुक्रवार को इस्तांबुल में ईरान और E3 देशों के बीच परमाणु वार्ता प्रस्तावित है. हालांकि, ईरान ने स्पष्ट किया है कि वह यूरेनियम संवर्धन के अपने अधिकार को नहीं छोड़ेगा. ईरानी विदेश मंत्री ने कहा, "अब आरोप लगाने वालों को अपने आचरण का जवाब देना होगा."
पश्चिमी देशों की रणनीति
अमेरिका, इज़राइल, ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी मिलकर ईरान पर दबाव बढ़ाने की कोशिश में हैं. उनका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र या IAEA के माध्यम से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सीमित करना है. इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इसे 'लीबिया मॉडल' की संज्ञा दे चुके हैं, जिसमें किसी देश के परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म कर दिया जाता है.
रूस-चीन का समर्थन
ईरान ने रूस और चीन को अपने कूटनीतिक ढाल के रूप में चुना है. यह गठबंधन उसे JCPOA या अन्य मंचों पर पश्चिमी दबाव से बचाने में मदद करेगा. ईरान ने संकेत दिए हैं कि यदि E3 देश दबाव की नीति अपनाते हैं, तो वह वार्ता स्थगित कर सकता है या नया ढांचा प्रस्तावित करेगा.
मध्यपूर्व में तनाव की आशंका
2018 में अमेरिका के JCPOA से बाहर होने के बाद, वह अब E3 के जरिए ईरान को नियंत्रित करने की कोशिश में है. दूसरी ओर, रूस और चीन के समर्थन से ईरान एकध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था को चुनौती दे रहा है. यदि वार्ता विफल होती है, तो ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ सकता है, जिससे मध्यपूर्व में विध्वंसक युद्ध की आशंका बढ़ जाएगी.