Hague Summit 2025: नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (NATO) ने 24-25 जून 2025 को द हेग में आयोजित समिट में एक क्रांतिकारी फैसला लिया. इसके तहत 32 सदस्य देश 2035 तक अपनी सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 5% हिस्सा रक्षा और सुरक्षा पर खर्च करेंगे.
यह निर्णय NATO के इतिहास में सबसे महत्वाकांक्षी बजट प्रस्तावों में से एक है, जो वैश्विक सुरक्षा संतुलन को नया रूप दे सकता है. इस कदम का उद्देश्य रूस जैसे दीर्घकालिक खतरों और आतंकवाद से निपटना है.
5% GDP का विभाजन और आधुनिक सुरक्षा
इस 5% बजट में से 3.5% हिस्सा पारंपरिक सैन्य शक्ति, जैसे टैंक, लड़ाकू विमान, और नौसेना, पर खर्च होगा. शेष 1.5% हिस्सा साइबर सुरक्षा, क्वांटम तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ड्रोन, अंतरिक्ष रक्षा, और डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर पर लगाया जाएगा.
यह रणनीति दर्शाती है कि NATO अब केवल मैदानी युद्ध पर नहीं, बल्कि साइबर और हाइब्रिड युद्धों पर भी ध्यान दे रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध में साइबर हमले और गलत सूचनाओं का उपयोग इस बदलाव की बड़ी वजह है.
यूरोपीय देशों के सामने चुनौतियां
कई यूरोपीय देशों के लिए यह लक्ष्य आसान नहीं होगा. बढ़ती महंगाई, सामाजिक खर्च, और आर्थिक दबाव के बीच इतना बड़ा रक्षा बजट जनता और राजनीति के लिए चुनौती बन सकता है. स्पेन जैसे देशों ने इस लक्ष्य को अव्यवहारिक बताया है. फिर भी, NATO का मानना है कि यह निवेश भविष्य की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है.
भारत पर क्या होगा असर?
हालांकि भारत NATO का सदस्य नहीं है, लेकिन यह फैसला अप्रत्यक्ष रूप से भारत को प्रभावित करेगा. चीन और पाकिस्तान के बढ़ते सैन्य दबाव के बीच भारत को साइबर रक्षा, AI, और आधुनिक सैन्य तकनीकों में निवेश बढ़ाना होगा. यह वैश्विक सामरिक संतुलन को प्रभावित करेगा, जिसके लिए भारत को अपनी रक्षा नीतियों को और मजबूत करना होगा.