तेहरान: पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक हलचल के बीच ईरान ने अमेरिका पर गंभीर आरोप लगाया है. ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्ला अली खामेनेई के सलाहकार अली अकबर वेलयाती ने दावा किया है कि अमेरिका, ईरान के चाबहार और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के पास नए सैन्य अड्डे बनाने की योजना पर काम कर रहा है. वेलयाती का कहना है कि यह कदम अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह चीन पर नियंत्रण और क्षेत्र के व्यापारिक व ऊर्जा मार्गों पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है.
वेलयाती ने यह भी आरोप लगाया कि अमेरिका, भारत और पाकिस्तान दोनों पर लगातार राजनयिक और रणनीतिक दबाव बना रहा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी हाल के महीनों में कई बार अमेरिका गए हैं और वहां शीर्ष रक्षा अधिकारियों से मुलाकात की है.
चाबहार की रणनीतिक अहमियत
ईरान के दक्षिण-पूर्वी सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में स्थित चाबहार बंदरगाह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है. यह भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधे व्यापारिक पहुँच प्रदान करता है — बिना पाकिस्तान की भूमि का उपयोग किए.
भारत इस बंदरगाह के बेहेश्ती टर्मिनल का संचालन करता है और अब तक 120 मिलियन डॉलर (लगभग 1000 करोड़ रुपये) से अधिक का निवेश कर चुका है.
भारत की योजना है कि 2026 तक चाबहार की क्षमता पांच गुना बढ़ा दी जाए.
चाबहार को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी माना जाता है. ग्वादर बंदरगाह चीन द्वारा संचालित है और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का अहम हिस्सा है. इस दृष्टि से, चाबहार भारत के लिए केवल एक व्यापारिक परियोजना नहीं, बल्कि क्षेत्रीय सामरिक संतुलन का भी केंद्र है.
चाबहार प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि
भारत और ईरान ने 2018 में चाबहार पोर्ट के विकास के लिए औपचारिक समझौता किया था. अमेरिका ने उस समय इस प्रोजेक्ट को प्रतिबंधों से छूट दी थी, ताकि अफगानिस्तान के लिए व्यापार और पुनर्निर्माण परियोजनाएं सुचारू रूप से चल सकें.
भारत ने अब तक इस प्रोजेक्ट में करीब 3,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है. चाबहार को लेकर भारत और ईरान के बीच बातचीत की शुरुआत 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के दौरान हुई थी, जबकि 2016 में भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते के तहत भारत ने 1250 करोड़ रुपये का सॉफ्ट लोन देने की घोषणा की थी.
भारत-ईरान साझेदारी का नया अध्याय
2024 में भारत और ईरान ने चाबहार बंदरगाह के प्रबंधन के लिए 10 वर्ष का नया समझौता किया. इसके तहत भारत को बंदरगाह संचालन और व्यापारिक लॉजिस्टिक्स में दीर्घकालिक भूमिका मिली है. यह बंदरगाह अब इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का भी हिस्सा बनने जा रहा है, जो रूस, यूरोप और मध्य एशिया को जोड़ने वाला एक बड़ा परिवहन नेटवर्क है.
क्षेत्रीय संतुलन की नई चुनौती
ईरान के इस खुलासे ने भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए नई कूटनीतिक चुनौती खड़ी कर दी है. अगर अमेरिका वास्तव में चाबहार-ग्वादर क्षेत्र में सैन्य अड्डे स्थापित करने की कोशिश कर रहा है, तो इससे न सिर्फ ईरान-अमेरिका संबंध और बिगड़ सकते हैं, बल्कि भारत-ईरान सहयोग और चीन-पाकिस्तान धुरी पर भी इसका सीधा असर पड़ेगा.