हर एक्टिविटी होगी ट्रैक? संचार साथी ऐप प्री-इंस्टॉल पर सियासत तेज, विपक्ष ने उठाए प्राइवेसी पर गंभीर सवाल

केंद्र सरकार के नए निर्देश के बाद कि मोबाइल निर्माता कंपनियां अपने सभी आगामी फोन में ‘संचार साथी’ ऐप को प्री-इंस्टॉल करें, देश की राजनीति एक बार फिर गर्म हो गई है. विपक्ष ने इस कदम को आम नागरिकों की निजी स्वतंत्रता और प्राइवेसी पर सीधा हमला बताया है.

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Communication companion app: केंद्र सरकार के नए निर्देश के बाद कि मोबाइल निर्माता कंपनियां अपने सभी आगामी फोन में ‘संचार साथी’ ऐप को प्री-इंस्टॉल करें, देश की राजनीति एक बार फिर गर्म हो गई है. विपक्ष ने इस कदम को आम नागरिकों की निजी स्वतंत्रता और प्राइवेसी पर सीधा हमला बताया है.

जबकि सरकार का तर्क है कि यह ऐप डिजिटल फ्रॉड रोकने और सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के उद्देश्य से लाया गया है. लेकिन विपक्षी दलों का कहना है कि इस ऐप के माध्यम से सरकार हर नागरिक की मोबाइल गतिविधि पर निगरानी रखने की कोशिश कर रही है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है.

डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस (DoT) के निर्देश के बाद शुरू हुआ विवाद धीरे-धीरे राष्ट्रीय बहस का रूप ले चुका है. इस ऐप के अनिवार्य प्री-इंस्टॉलेशन और उसे हटाने की अनुमति न होने को लेकर कई विपक्षी नेताओं ने गंभीर आपत्तियां दर्ज कराई हैं.

साइबर सिक्योरिटी और फ्रॉड 

कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने इस फैसले को “जासूसी की कोशिश” बताया. उन्होंने कहा कि नागरिकों को अपने परिवार और दोस्तों से बिना सरकारी निगरानी के बात करने का स्पष्ट अधिकार है. उनके अनुसार सरकार लोकतंत्र की मूल भावना के विपरीत जाकर देश को तानाशाही की ओर धकेल रही है. प्रियंका गांधी ने यह भी कहा कि साइबर सिक्योरिटी और फ्रॉड रोधी व्यवस्था जरूरी है, लेकिन यह किसी भी नागरिक के फोन में झांकने का बहाना नहीं बन सकती.

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि सरकार सार्थक चर्चा से बच रही है. प्रियंका गांधी ने कहा, 'फ्रॉड रिपोर्टिंग और हर नागरिक पर निगरानी रखने के बीच बहुत पतली रेखा है. सरकार इसका इस्तेमाल लोगों के निजी जीवन में दखल देने के लिए कर रही है.'

पेगासस मामले का जिक्र 

शिवसेना (UBT) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी सरकार पर कड़ा प्रहार किया. उन्होंने इसे ‘पहले से इंस्टॉल ऐप के नाम पर निगरानी का नया तरीका’ बताया. उनके मुताबिक, यदि ऐप फोन में अनिवार्य रूप से इंस्टॉल रहेगा और उसे हटाया नहीं जा सकेगा, तो इसका सीधा मतलब है कि नागरिक की हर डिजिटल गतिविधि ट्रैक की जा सकती है. उन्होंने कहा, “प्राइवेसी हमारा संवैधानिक अधिकार है और सरकार उसी पर हमला कर रही है. हम शिकायत निवारण सिस्टम की मांग कर रहे हैं, लेकिन बदले में हमें निगरानी सिस्टम दिया जा रहा है.”

इस मुद्दे पर CPI-M के सांसद जॉन ब्रिटास ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. उन्होंने कहा कि यह ऐप सुप्रीम कोर्ट के पुट्टास्वामी जजमेंट (2017) का उल्लंघन है, जिसमें प्राइवेसी को मौलिक अधिकार माना गया था. ब्रिटास ने इसे ‘ओपन सर्विलांस’ का कदम बताते हुए कहा कि सरकार धीरे-धीरे देश को पुलिस स्टेट की ओर ले जा रही है. उन्होंने पेगासस मामले का जिक्र करते हुए सवाल उठाया कि जब पहले हुए डिजिटल निगरानी के आरोपों का कोई नतीजा नहीं निकला, तो अब इस नए निर्देश पर कैसे भरोसा किया जाए.

डिजिटल आज़ादी और संवैधानिक अधिकारों का सवाल

ब्रिटास ने यह भी कहा कि दुनिया भर में प्राइवेसी की रक्षा के लिए कड़े कानून बनाए जा रहे हैं, जबकि भारत में इसके उलट रास्ता अपनाया जा रहा है. उनके अनुसार, iPhone यूजर्स को हाल ही में जो अलर्ट मिले कि स्टेट एजेंसियां उनके डिवाइस एक्सेस करने की कोशिश कर रही हैं, वह भी चिंताजनक है.

कुल मिलाकर, संचार साथी ऐप को प्री-इंस्टॉल किए जाने का मुद्दा तकनीकी से ज्यादा राजनीतिक और संवैधानिक बहस का विषय बन चुका है. जहां सरकार इसे सुरक्षा और फ्रॉड रोकथाम का मजबूत टूल बता रही है, वहीं विपक्ष इसे नागरिकों के निजी जीवन में सरकारी दखल के रूप में देख रहा है. आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर और तेज बहस होने की संभावना है, क्योंकि यह सिर्फ एक ऐप का मामला नहीं, बल्कि डिजिटल आज़ादी और संवैधानिक अधिकारों का सवाल बन चुका है.