एक करोड़ का इनामी नक्सली हिडमा ढेर, मुठभेड़ में पत्नी भी मारी गई

आंध्र प्रदेश–छत्तीसगढ़ की सीमा से लगी घनी जंगल-पहाड़ियों में सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच जबर्दस्त मुठभेड़ हुई, जिसमें एक करोड़ के इनामी और देश के सबसे खतरनाक नक्सली कमांडरों में शामिल मादवी हिडमा को ढेर कर दिया गया.

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नई दिल्ली: आंध्र प्रदेश–छत्तीसगढ़ की सीमा से लगी घनी जंगल-पहाड़ियों में सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच जबर्दस्त मुठभेड़ हुई, जिसमें एक करोड़ के इनामी और देश के सबसे खतरनाक नक्सली कमांडरों में शामिल मादवी हिडमा को ढेर कर दिया गया. इस कार्रवाई में उसकी पत्नी, जो खुद नक्सली संगठन में सक्रिय भूमिका निभाती थी, भी मारी गई. यह ऑपरेशन आंध्र प्रदेश के अल्लूरी जिले और छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले की सीमा पर चलाए गए संयुक्त सर्च अभियान का हिस्सा था.

घेराबंदी को भांपते ही जवानों पर अंधाधुंध फायरिंग

सुरक्षा बलों को पिछले कई दिनों से हिडमा की मौजूदगी को लेकर पुख्ता इनपुट मिल रहे थे. इसी आधार पर विशेष बलों ने जंगलों में घेरा डालते हुए अभियान शुरू किया. मुठभेड़ उस समय भड़क उठी जब नक्सलियों ने घेराबंदी को भांपते ही जवानों पर अंधाधुंध फायरिंग कर दी. जवाबी कार्रवाई में सुरक्षाबलों ने दो नक्सलियों को ढेर किया, जिनकी पहचान हिडमा और उसकी पत्नी के रूप में हुई.

43 वर्षीय मादवी हिडमा पिछले दो दशकों से सुरक्षा एजेंसियों के लिए सिरदर्द बना हुआ था. वह पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की बटालियन नंबर 1 का प्रमुख कमांडर था और सीपीआई (माओवादी) की केंद्रीय समिति का सबसे कम उम्र का सदस्य भी रहा. गुरिल्ला युद्ध, जंगल आधारित हमले और रणनीतिक प्लानिंग की उसकी क्षमता के कारण वह संगठन में बेहद प्रभावशाली माना जाता था.

नेटवर्क को कमजोर करने वाली बड़ी सफलता

छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के पुवर्ती इलाके में 1981 में जन्मा हिडमा कम उम्र में ही माओवादियों से जुड़ गया था. 2013 के चर्चित दरभा घाटी नरसंहार में वह मुख्य साजिशकर्ता था, जिसकी वजह से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं सहित 27 लोगों की जान गई थी. इसके बाद 2017 में सुकमा में CRPF पर हुए घातक हमले में भी उसकी महत्वपूर्ण भूमिका सामने आई, जिसमें 25 जवान शहीद हुए थे. सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक वह अब तक 26 से अधिक बड़े नक्सली हमलों की योजना बनाकर उन्हें अंजाम दे चुका था.

हिडमा की पत्नी भी नक्सली संगठन में सक्रिय थी और कई अभियानों में उसकी अहम भूमिका रहती थी. मुठभेड़ में दोनों की मौत को सुरक्षा एजेंसियां दक्षिण बस्तर में माओवादी नेटवर्क को कमजोर करने वाली बड़ी सफलता मान रही हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि हिडमा के मारे जाने से माओवादी संगठन को रणनीति, पहुँच और स्थानीय पकड़ के स्तर पर भारी नुकसान हुआ है. उसके नेतृत्व और क्रूर हमलों की वजह से दक्षिण बस्तर लंबे समय से नक्सलियों के प्रभाव में था, लेकिन अब उसकी मौत से संगठन की ताकत पर गंभीर असर पड़ना तय माना जा रहा है.