भारत के सच्चे सपूत श्यामा प्रसाद मुखर्जी की कहानी

2025-07-06T11:55:00+05:30

एक प्रखर भारतीय राजनीतिज्ञ

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को कोलकाता में एक बंगाली हिंदू परिवार में हुआ. वे न केवल एक कुशल राजनीतिज्ञ थे, बल्कि बैरिस्टर और शिक्षाविद भी थे.

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72वीं पुण्यतिथि

उन्होंने जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में सेवा दी. उनकी 72वीं पुण्यतिथि पर उनके जीवन को याद करें.

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परिवार और शिक्षा

मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी, जिन्हें 'बंगाल टाइगर' कहा जाता था, एक प्रसिद्ध वकील और कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति थे. उनकी मां का नाम जोगमाया देवी था.

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इंग्लैंड में पढ़ाई

श्यामा प्रसाद के तीन भाई और तीन बहनें थीं. उन्होंने 1921 में अंग्रेजी में प्रथम श्रेणी के साथ स्नातक, 1923 में एम.ए. और 1924 में बी.एल. की डिग्री हासिल की. 1926 में वे इंग्लैंड गए और 1927 में बैरिस्टर बने.

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व्यक्तिगत जीवन की त्रासदी

1922 में श्यामा प्रसाद ने सुधा देवी से विवाह किया. उनके पांच बच्चे थे, लेकिन 1933-34 में उनकी पत्नी का डबल निमोनिया से निधन हो गया. इस नुकसान ने उनके जीवन को गहरा प्रभावित किया, फिर भी उन्होंने अपने कर्तव्यों को बखूबी निभाया.

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राजनीतिक करियर की शुरुआत

1929 में मुखर्जी ने बंगाल विधान परिषद के सदस्य के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुने गए, लेकिन कांग्रेस के विधायिका बहिष्कार के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

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वित्त मंत्री के रूप में भी किया काम

बाद में उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीता और 1941-42 में बंगाल के वित्त मंत्री बने.

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नेहरू के साथ मतभेद

मुखर्जी ने जवाहरलाल नेहरू के मंत्रिमंडल में काम किया, लेकिन नेहरू-लियाकत समझौते का विरोध करने के कारण उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

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दुखद निधन

22 जून, 1953 को श्यामा प्रसाद मुखर्जी को दिल का दौरा पड़ा. अगले दिन, 23 जून को उनका निधन हो गया. उनकी मृत्यु ने देश को एक महान नेता से वंचित कर दिया.

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