ब्लैक बॉक्स एक छोटी मशीन है. यह उड़ान के दौरान विमान की जानकारी रिकॉर्ड करती है. इसमें दो हिस्से होते हैं: कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR).
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आग और पानी में रहने के लिए तैयार
यह चमकीला नारंगी या पीला बॉक्स होता है. इसे विस्फोट, आग और पानी के दबाव झेलने के लिए बनाया जाता है.
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आविष्कार का इतिहास
ब्लैक बॉक्स का आविष्कार ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन ने किया. 1953 में डे हैविलैंड कॉमेट विमान की दुर्घटनाओं के बाद इसे बनाया गया. 1956 में वॉरेन ने इसका प्रोटोटाइप तैयार किया. 1963 में ऑस्ट्रेलिया ने इसे अनिवार्य किया.
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हादसे में भूमिका
अहमदाबाद में एयर इंडिया की फ्लाइट AI171 के हादसे की जांच में ब्लैक बॉक्स अहम है. गुरुवार को विमान उड़ान भरने के बाद दुर्घटनाग्रस्त हुआ. पायलट ने ‘मेडे’ कॉल की, लेकिन इसके बाद रेडियो साइलेंस रहा. ब्लैक बॉक्स हादसे के कारणों का खुलासा करेगा.
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ब्लैक बॉक्स की ताकत
यह स्टील या टाइटेनियम से बना होता है. यह 3,400 गुना गुरुत्वाकर्षण बल सह सकता है. इसे विमान के पिछले हिस्से में रखा जाता है. यह हिस्सा हादसों में कम प्रभावित होता है. यह अत्यधिक गर्मी और ठंड से भी सुरक्षित रहता है.
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कैसे करता है काम?
CVR पायलटों की बातचीत और कॉकपिट की आवाजें रिकॉर्ड करता है. FDR ऊंचाई, गति, दिशा और ऑटोपायलट जैसे 80 से अधिक डेटा रिकॉर्ड करता है. डेटा विश्लेषण में 10-15 दिन लग सकते हैं. यह हादसे की पूरी कहानी बताता है.
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अहमदाबाद हादसे की स्थिति
एयर इंडिया का बोइंग 787 विमान मेडिकल कॉलेज में गिरा. इसमें 265 लोग मारे गए. ब्लैक बॉक्स अभी नहीं मिला है. जांच दल इसे ढूंढ रहा है. यह हादसे के अंतिम क्षणों की जानकारी देगा.
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पिछले हादसों में भूमिका
2020 में कोझिकोड विमान हादसे की जांच में ब्लैक बॉक्स ने पायलट की गलती उजागर की. 2015 की जर्मनविंग्स दुर्घटना में भी इसका उपयोग हुआ. यह हादसों के कारण समझने में महत्वपूर्ण है.
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सुरक्षा की उम्मीद
ब्लैक बॉक्स हादसों से सबक लेने में मदद करता है. जिससे की आगे होने वाले हादसे को रोका जा सकता है.