रणथंभौर टाइगर रिजर्व में 19 जून को सन्नाटा छा गया. प्रसिद्ध बाघिन टी-84, जिसे एरोहेड के नाम से जाना जाता था, ने अंतिम सांस ली. उसकी मौत ने जंगल की एक महान कहानी को अलविदा कहा.
Credit: Social Media
एरोहेड का शाही वंश
एरोहेड कोई साधारण बाघिन नहीं थी. वह मछली (टी-16) की पोती थी, जिसे दुनिया की सबसे ज्यादा फोटो खींची गई बाघिन माना जाता है. उसकी माँ कृष्णा (टी-19) और पिता स्टार मेल (टी-28) भी रणथंभौर के शाही बाघ थे.
Credit: Social Media
तीर के निशान वाली रानी
2014 में जन्मी एरोहेड का नाम उसके गाल पर तीर के निशान से पड़ा. अपने भाई-बहन लाइटनिंग और पैकमैन के साथ वह रणथंभौर के जोन 2, 3 और 4 में पली. जोन 3 में उसने अपनी माँ का क्षेत्र संभाला.
Credit: Social Media
पर्यटकों की पसंद
एरोहेड रणथंभौर की शान थी. सफारी जीप में आने वाले पर्यटक उसे देखने को बेताब रहते थे. उसकी शाही चाल और साहस ने सबका ध्यान खींचा. वह जंगल की सच्ची रानी थी.
Credit: Social Media
आखिरी शिकार की गूंज
एरोहेड ने अपनी दादी मछली की तरह मगरमच्छ को शिकार बनाया. कुछ दिन पहले जोन 3 के पदम तालाब में उसने मगरमच्छ को मार डाला. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. उसका साहस अंत तक बरकरार था.
Credit: Social Media
बीमारी से जंग
एरोहेड कई महीनों से हड्डी के कैंसर से जूझ रही थी. उसका शरीर कमजोर हो चुका था. फोटोग्राफर सचिन राय ने उसकी आखिरी सैर देखी. वह मुश्किल से कुछ कदम चल पाई और पेड़ के नीचे लेट गई.
Credit: Social Media
दिल दहलाने वाली विदाई
रणथंभौर के आधिकारिक इंस्टाग्राम ने लिखा, "हमारी रानी एरोहेड अब नहीं रही." उसकी बेटी कंकती को उसी दिन मुकुंदरा टाइगर रिजर्व भेजा गया. यह संयोग जंगल की कहानी को और मार्मिक बनाता है.
Credit: Social Media
फोटोग्राफर की यादें
सचिन राय ने एरोहेड की आखिरी तस्वीरें शेयर कीं. उन्होंने कहा, "उसे संघर्ष करते देखना दिल दहला देने वाला था." उसकी हर हरकत में जिंदगी की जंग दिख रही थी.
Credit: Social Media
एरोहेड की विरासत
एरोहेड की कहानी साहस और शक्ति की मिसाल है. उसने मछली और कृष्णा की विरासत को आगे बढ़ाया. उसका अंतिम शिकार और जिंदादिली हमेशा याद रहेगी.