रणथंभौर की रानी एरोहेड की अंतिम विदाई

2025-06-20T11:55:00+05:30

रणथंभौर का सन्नाटा

रणथंभौर टाइगर रिजर्व में 19 जून को सन्नाटा छा गया. प्रसिद्ध बाघिन टी-84, जिसे एरोहेड के नाम से जाना जाता था, ने अंतिम सांस ली. उसकी मौत ने जंगल की एक महान कहानी को अलविदा कहा.

Credit: Social Media

एरोहेड का शाही वंश

एरोहेड कोई साधारण बाघिन नहीं थी. वह मछली (टी-16) की पोती थी, जिसे दुनिया की सबसे ज्यादा फोटो खींची गई बाघिन माना जाता है. उसकी माँ कृष्णा (टी-19) और पिता स्टार मेल (टी-28) भी रणथंभौर के शाही बाघ थे.

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तीर के निशान वाली रानी

2014 में जन्मी एरोहेड का नाम उसके गाल पर तीर के निशान से पड़ा. अपने भाई-बहन लाइटनिंग और पैकमैन के साथ वह रणथंभौर के जोन 2, 3 और 4 में पली. जोन 3 में उसने अपनी माँ का क्षेत्र संभाला.

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पर्यटकों की पसंद

एरोहेड रणथंभौर की शान थी. सफारी जीप में आने वाले पर्यटक उसे देखने को बेताब रहते थे. उसकी शाही चाल और साहस ने सबका ध्यान खींचा. वह जंगल की सच्ची रानी थी.

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आखिरी शिकार की गूंज

एरोहेड ने अपनी दादी मछली की तरह मगरमच्छ को शिकार बनाया. कुछ दिन पहले जोन 3 के पदम तालाब में उसने मगरमच्छ को मार डाला. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ. उसका साहस अंत तक बरकरार था.

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बीमारी से जंग

एरोहेड कई महीनों से हड्डी के कैंसर से जूझ रही थी. उसका शरीर कमजोर हो चुका था. फोटोग्राफर सचिन राय ने उसकी आखिरी सैर देखी. वह मुश्किल से कुछ कदम चल पाई और पेड़ के नीचे लेट गई.

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दिल दहलाने वाली विदाई

रणथंभौर के आधिकारिक इंस्टाग्राम ने लिखा, "हमारी रानी एरोहेड अब नहीं रही." उसकी बेटी कंकती को उसी दिन मुकुंदरा टाइगर रिजर्व भेजा गया. यह संयोग जंगल की कहानी को और मार्मिक बनाता है.

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फोटोग्राफर की यादें

सचिन राय ने एरोहेड की आखिरी तस्वीरें शेयर कीं. उन्होंने कहा, "उसे संघर्ष करते देखना दिल दहला देने वाला था." उसकी हर हरकत में जिंदगी की जंग दिख रही थी.

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एरोहेड की विरासत

एरोहेड की कहानी साहस और शक्ति की मिसाल है. उसने मछली और कृष्णा की विरासत को आगे बढ़ाया. उसका अंतिम शिकार और जिंदादिली हमेशा याद रहेगी.

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