भारत में हर चार में से तीन जानवरों के काटने का कारण कुत्ते हैं, सच्चाई जानकर चौंक जाएगें आप

हाल ही में प्रकाशित लैंसेट अध्ययन के अनुसार, भारत में हर चार जानवरों के काटने की घटनाओं में से तीन घटनाएं कुत्तों द्वारा होती हैं. यह आंकड़ा भारत में पशु-प्रकृति से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर गंभीर चिंता पैदा करता है, क्योंकि कुत्तों के काटने से होने वाली चोटें और संक्रमणों के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. 

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Courtesy: social media

हाल ही में प्रकाशित लैंसेट अध्ययन के अनुसार, भारत में हर चार जानवरों के काटने की घटनाओं में से तीन घटनाएं कुत्तों द्वारा होती हैं. यह आंकड़ा भारत में पशु-प्रकृति से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर गंभीर चिंता पैदा करता है, क्योंकि कुत्तों के काटने से होने वाली चोटें और संक्रमणों के परिणामस्वरूप स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. 

रेबीज जैसी खतरनाक बीमारियों का शिकार

लैंसेट द्वारा किए गए इस अध्ययन में पाया गया कि भारत में कुत्तों के काटने के मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है. कुत्तों का यह आक्रामक व्यवहार मुख्य रूप से लापरवाही से छोड़े गए आवारा कुत्तों, उनकी संख्या में बढ़ोतरी और उन्हें नियंत्रित करने में प्रशासन की विफलता के कारण हो सकता है. इस अध्ययन में यह भी उल्लेख किया गया है कि कुत्तों के काटने के परिणामस्वरूप लोग रेबीज जैसी खतरनाक बीमारियों का शिकार हो सकते हैं, जो कई बार जानलेवा साबित हो सकती है. 

कुत्तों के काटने की घटनाओं का स्वास्थ्य पर असर

कुत्तों के काटने के कारण सबसे अधिक चिंता संक्रमणों और रोगों से संबंधित है. इसके अलावा, कुत्ते द्वारा काटे गए व्यक्ति को अगर सही समय पर उपचार न मिले तो यह संक्रमण, रक्तदूषित रोग (जैसे रेबीज) और यहां तक कि मौत का कारण बन सकता है. लैंसेट के अध्ययन के मुताबिक, कुत्तों के काटने की घटनाओं में समय पर चिकित्सा देखभाल और वैक्सीनेशन की आवश्यकता को लेकर जागरूकता की कमी है, जो कि समस्या को और बढ़ा सकती है. 

सामाजिक और प्रशासनिक उपायों की आवश्यकता

इस अध्ययन के परिणामस्वरूप यह साफ़ होता है कि कुत्तों के काटने की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए न केवल समाज में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, बल्कि कुत्तों की संख्या पर भी नियंत्रण पाना होगा. सरकार और स्थानीय प्रशासन को आवारा कुत्तों के नियंत्रण और इलाज के लिए ठोस उपायों को लागू करने की आवश्यकता है. इसके साथ ही, नागरिकों को इस मुद्दे के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता है. 

लैंसेट का यह अध्ययन कुत्तों द्वारा होने वाली चोटों और उनसे उत्पन्न होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं की गंभीरता को उजागर करता है. इस समस्या के समाधान के लिए सिर्फ चिकित्सा दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. यदि जल्द ही उचित उपाय नहीं किए गए तो यह समस्या और बढ़ सकती है, जिससे देश के स्वास्थ्य ढांचे पर भारी दबाव पड़ सकता है.