'आधार कार्ड नहीं है नागरिकता का प्रमाण', सुप्रीम कोर्ट का बड़ा बयान

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने कहा कि आधार एक्ट में भी इसे नागरिकता का सबूत नहीं माना गया है.

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Aadhaar card: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि आधार कार्ड को नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं माना जा सकता. कोर्ट ने कहा कि आधार एक्ट में भी इसे नागरिकता का सबूत नहीं माना गया है. यह टिप्पणी याचिकाकर्ताओं की उस दलील के जवाब में आई, जिसमें उन्होंने SIR प्रक्रिया में आधार कार्ड को स्वीकार न करने पर सवाल उठाए थे.

SIR प्रक्रिया पर उठे सवाल

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण, अभिषेक मनु सिंघवी और गोपाल शंकरनारायण ने कोर्ट में दलील दी कि बिहार में SIR प्रक्रिया में कई अनियमितताएं हैं. कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि किसी व्यक्ति का निवासी होना और 18 वर्ष की आयु पूरी करना मतदाता सूची में शामिल होने के लिए पर्याप्त होना चाहिए.

हालांकि, कोर्ट ने इस पर कहा कि निवास साबित करने के लिए कई अन्य दस्तावेज जैसे परिवार रजिस्टर, पेंशन कार्ड और जाति प्रमाण पत्र उपलब्ध हैं. कोर्ट ने यह भी बताया कि 7.89 करोड़ मतदाताओं में से 7.24 करोड़ ने SIR के लिए फॉर्म भरा है, जिसमें 2003 के SIR में शामिल लोगों से भी फॉर्म भरवाए जा रहे हैं.

मृत और अनुपस्थित मतदाताओं की सूची पर विवाद

याचिकाकर्ताओं ने SIR प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए. कपिल सिब्बल ने दावा किया कि 22 लाख लोगों को मृत और 36 लाख को स्थायी रूप से क्षेत्र से बाहर बताया जा रहा है, लेकिन उनकी सूची सार्वजनिक नहीं की गई.

प्रशांत भूषण ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि सूची सिर्फ राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट्स को दी गई है, न कि आम जनता को. इस पर चुनाव आयोग के वकील राकेश द्विवेदी ने सफाई दी कि सभी राजनीतिक दलों को सूचियां उपलब्ध कराई गई हैं. भूषण ने सवाल किया कि ऐसी सूचियां केवल राजनीतिक दलों तक सीमित क्यों हैं.

SIR का उद्देश्य और कोर्ट की राय

सुप्रीम कोर्ट ने SIR प्रक्रिया का बचाव करते हुए कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य मतदाता सूची में मौजूद गलतियों को सुधारना है. याचिकाकर्ताओं ने यह भी सवाल उठाया कि बूथ लेवल ऑफिसर इतने कम समय में लाखों लोगों की जानकारी की पुष्टि कैसे कर सकते हैं.

कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की कि SIR का मकसद ही डेटा को सटीक और विश्वसनीय बनाना है. सुप्रीम कोर्ट का यह बयान आधार कार्ड और मतदाता सूची से जुड़े नियमों को लेकर एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण है. यह मामला बिहार में मतदाता सूची की शुद्धता और पारदर्शिता को लेकर चल रही बहस को और गहरा सकता है.